आरक्षण खत्म करने की मांग को लेकर भारत बंद का आयोजन सोशल मीडिया के माध्यम से होना हैरान करने वाला है. देश में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की मांग लंबे समय से उठती रही है. लेकिन पहली बार सवर्ण समाज के युवा इस तरह सड़कों पर उतरे. साफ है कि देश में बेरोजगारी बढ़ रही है और युवा वर्ग सड़कों पर उतरने तक के लिए मजबूर हो रहा है. यह मोदी सरकार के लिए चिंता की खबर होनी चाहिए. किसानों के बाद नौजवानों में भी अब गुस्सा है. मोदी सरकार को दो मोर्चों पर जूझना पड़ रहा है. मोदी सरकार दावा करती रही है कि उसने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत पिछले तीन साल में ग्यारह करोड़ युवाओं को पांच लाख करोड़ के आसपास का कर्ज दिया है.


इसे सरकार रोजगार का मौका दिए जाने के रुप में प्रचारित करती रही है और कहती रही है कि नौकरी देने से उसका मतलब रोजगार के मौके पैदा करना था और जिस काम को वह बखूबी कर रही है. लेकिन सवाल उठता है कि क्या वास्तव में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत कर्ज लेने वालों का भला हुआ है और क्या वो अन्य लोगों को रोजगार देने में भी कामयाब रहे हैं. मुद्रा योजना के आंकड़े बताते हैं कि इसके तहत 92% लोगों को पचास हजार रुपये तक वाली शिशु योजना के तहत ही लोन दिया गया और औसत रुप से एक शख्स को सिर्फ 23 हजार रुपये का ही लोन दिया गया. सवाल उठता है कि क्या कोई 23 हजार में अपना धंधा शुरु कर सकता है और क्या वह किसी अन्य को भी रोजगार दे सकता है.


तीन साल बाद पीएम मुद्रा योजना का हाल



प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तीन साल पूरे हो गये हैं. इसमें 50 हज़ार से लेकर 10 लाख रुपए तक का कर्जा दिया जाता है जिसके लिए ना जमीन गिरवी रखनी पड़ती है और न ही गहने. योजना का मकसद बेरोजगारों को अपना खुद का धंधा शुरु करने के लिए लोन देना था. प्रयास ये था कि छोटे-मोटे धंधे कर रहे लोगों को कर्ज दिया जाए जिससे वो अपने धंधे का विस्तार कर सकें और साथ ही दूसरों को रोजगार भी दे सकें.


तीन कैटेगरी बनाई गयी- शिशु योजना में 50 हज़ार तक का लोन, किशोर योजना में पांच लाख तक का लोन और तरुण योजना के तहत पांच लाख से लेकर 10 लाख रुपये तक का लोन. देश के सभी बैंकों को इससे जोड़ा गया. लेकिन देखा गया है कि पूरी योजना बैंक मैनेजरों के रहमो करम पर ही चल रही है. कहीं तो अंधा बांटे रेवड़ी की तर्ज पर कर्ज दिया जा रहा है तो कहीं कोई न कोई नुक्स निकालकर फाइलें लौटाई जा रही हैं. कहीं लक्ष्य पूरे करने के लिए अपनों को कर्ज देने की रस्मअदायगी पूरी हो रही है तो कहीं कर्ज नहीं देने के नये-नये बहाने तलाशे जा रहे हैं. यहां तक कि कुछ बैंक मैनेजर इसकी आड़ में अपनी जेब भरने में लगे हैं.


राजस्थान में सामने आया 80 लाख का घोटाला



जोधपुर ने राजस्थान के बाड़मेर जिले में पीएनबी बैंक की दो शाखाओं में कुल मिलाकर 80 लाख का घोटाला सीबीआई पकड़ा है जिसकी जांच चल रही है. बाड़मेर शहर में बैंक की शाखा में नियमों को ताक पर रखकर मुद्रा योजना के तहत 26 खाताधारकों को कुल मिलाकर 62 लाख रुपये का लोन दिया गया. बैंक मैनेजर ने बिना मौके पर गये कागजों में ही जाना दिखा दिया. 26 में से पांच डूबत खाता हो चुके हैं और बाकी से भी पैसा वापस आने की कोई उम्मीद नहीं है.


सितंबर 2016 से मार्च 2017 के बीच 62 लाख रुपये के कर्ज की बंदरबांट हुई. जिन 26 खाताधारकों को कर्ज दिया गया उन्होंने लोन मिलने के डेढ़ साल बाद भी नाममात्र का पैसा चुकाया है. मुद्रा योजना के तहत बैंक 25 किलोमीटर के दायरे में ही लोन दे सकता है. देखा गया है कि बैंक मैनेजर इस का फायदा उठाते हैं और जरुरतमंदों की फाइल यह कह कर लौटा देते हैं कि उनका निवास बैंक के 25 किलोमीटर के दायरे में नहीं आता है. लेकिन बाड़मेर में तो बैंक से 100 किलोमीटर दूर रहने वालों को ही लोन दे दिया गया.


सीबीआई जोधपुर के अनुसार एक कंस्ट्रक्शन कंपनी के मालिक का पता शहर से 100 किलोमीटर दूर रानावास में है लेकिन उसे साढ़े तीन लाख का कर्ज दिया गया जो चुकाया जाना बाकी है. इसी तरह बाड़मेर की इस शाखा से 80 किलोमीटर दूर गडरा में रहने वाले एक शख्स को तीस हजार का लोन दिया गया जिसमें से उसने लोन लेने के डेढ साल बाद सिर्फ साढ़े चार सौ रुपये ही चुकाए हैं. सीबीआई का कहना है कि बैंक मैनेजर ने बिना मौके पर गये ही लोन दे दिया.


घोटाले में शामिल पाए गए हैं बैंक कर्मी


साथ ही लोन देने के बाद भी एक बार मौके पर जाकर ये देखना जरुरी नहीं समझा कि लोन जिस मकसद से लिया गया है उस पर अमल हो रहा है या नहीं. सीबीआई का कहना है कि 62 लाख रुपए की रिकवरी की गुंजायश खत्म हो गयी है. पांच खाताधारक तो एनपीए घोषित किए जा चुके हैं. सीबीआई को शक है कि इनमें से कुछ खाते फर्जी भी हो सकते हैं और इस कोण से भी जांच की जा रही है. हैरानी की बात है कि जिस ब्रांच मैनेजर को सस्पेंड कर दिया गया था उन्हें बहाल कर दिया गया है जबकि अभी 62 लाख रुपये की रिकवरी होना बाकी है.


सीबीआई ने बाड़मेर में ही चौहटटन में मुद्रा योजना के तहत एक अन्य घोटाला पकड़ा है. पीएनबी की चौहटटन शाखा में यह गबन मार्च 2016 से जून 2017 के बीच हुआ. बैंक मैनेजर ने पीएम मुद्रा योजना के तहत सात अलग-अलग लोगों को 33 लाख रुपये का कर्ज दिया. इसमें रामा राम भी थे जिनके खाते में चार मार्च 2017 को चार लाख 90 हजार रुपये जमा किये गये लेकिन यह सारा पैसा उसी दिन अनिल नाम के शख्स के खाते में ट्रांसफर कर दिया गया जो बैंक मैनेजर के भाई हैं.


इसी तरह पीएम मुद्रा योजना के तहत दिये गये लोन की पूरी या फिर आंशिक राशि मैनेजर की पत्नी और मां के खाते में भी ट्रांसफर की गयी. कुल मिलाकर सारे खाते फर्जी थे या फिर लोन देने के बदले रिश्वत ली गयी और बैंक को करीब 17 लाख रुपये का चूना लगा. सीबीआई ने जिस तरह से एक ही जिले में एक ही बैंक की दो शाखाओं में 80 लाख रुपये का घोटाला पकडा है उससे साफ है कि किस तरह छोटे शहरों और कस्बों में मुद्रा योजना के नाम पर पैसों की बंदरबांट हो रही हैं.


प्रधानमंत्री मुद्रा योजना में हो रहे घोटालों की यह एक झलक है. आगे आपको बताते हैं कुछ ऐसे लोगों की कहानी जिन्हें विचित्र-विचित्र कारणों से मुद्रा योजना के तहत कर्ज नहीं मिला. ऐसे भी कुछ लोगों की कहानी बताएंगे जिन्हें कर्ज मिला और उनकी जिंदगी संवर गयी.


सब करके भी विमल को एक साल बाद भी नहीं मिला लोन


जयपुर में विमल कुमावत हैंडीक्राफ्ट का काम करते हैं. पिछले 10 सालों से वो यह काम कर रहे हैं. अपनी तरफ से तीन लाख रुपये की पूंजी लगायी है. महीने में 50-60 हजार रुपये कमा लेते हैं. कुछ महिलाओं को पेपरमेशी आदि का रोजगार भी दिया हुआ है. विमल को मशीनें खरीदने के लिए 10 लाख रुपये की दरकार थी. विमल का कहना है कि वो अपने घर के पास वाली स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की शाखा में गये तो उन्हें उस शाखा में जाने को कहा गया जहां उनका खाता है. वहां गये तो कहा गया कि उस शाखा में जाइए जो घर के नजदीक है. खैर ये मामला सुलटा तो नया बहाना सामने था. बैंक ने कहा कि करंट अकाउंट खुलवाओ. छह महीने उसे चलाओ और उसके बाद ही देखेंगे कि कर्ज दिया जा सकता है या नहीं. राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स जयपुर से विमल ने पांच साल का बाकायदा कोर्स किया है. उन्हें भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय से आर्टीसन का दर्जा भी हासिल है. विमल ने बैंक वालों से कहा कि वो उनके घर आकर उनका काम देख सकते हैं लेकिन बैंक अधिकारियों ने मौके पर जाए बिना ही लोने देने से मना कर दिया. विमल का कहना है कि लोन मिलता तो आय भी बढ़ती और वह कुछ महिलाओं को रोजगार भी देने की स्थिति में होते.


लोन पर ब्याज की मार के परेशान विमल कुमावत


जयपुर के विमल कुमावत को तो बैंक के एक साल चक्कर काटने पर नहीं लोन नहीं मिला लेकिन अलवर के राहुल रंजन किस्मत वाले निकले. उन्हें तो बैंक मैनेजर ने खुद फोन करके बैंक बुलाया क्योंकि राहुल रंजन ने उनके घर नल फिटिंग का काम किया था. राहुल रंजन को 50 हजार का लोन तो मिला जिससे उनका काम भी बढ़ा और आय भी 10 हजार रुपये महीने से बढ़कर 15 हजार हो गयी लेकिन वो ब्याज से परेशान हैं जो 10 फीसद है. 50 हजार के लोन पर पांच हजार का ब्याज (दस फीसद) वो चुका चुके हैं और बैंक ढाई हजार रुपये और मांग रहा है.


सना खान को तीन बैंकों ने खाली हाथ लौटाया


जैसलमेर में सना खान मिली. वो 'जोया का जायका' नाम का रेस्तरां चलाती हैं. बेटी के नाम पर रेस्तरां का नाम रखा है जिसका विस्तार करना चाहती हैं. उन्होंने तीन-तीन बैंकों के चक्कर काटे. पीएम मुद्रा योजना के तहत महिलाओं को लोन देने पर खास जोर देने का दावा किया जा रहा है लेकिन सना को तो तीन तीनों बैंकों ने वापस लौटा दिया. एसबीआई, पीएनपी और एचएफडीसी तीनों ने ही बैंकों ने उन्हें लोन देने से मना कर दिया. किसी ने कहा कि खुद का रेस्तरां नहीं है किराए पर है तो किसी ने कहा कि पता नहीं चलेगा या नहीं. एक और ने कहा कि उसने लोन देना फिलहाल बंद कर रखा है. वहीं एक बैंक ने कहा कि 10 लाख का लोन तो करोड़ों के टर्नओवर वालों को ही मिलता है. सना का कहना है कि वो पांच लाख का लोन चाहती थीं, अगर मिल जाता तो रेस्तरां का विस्तार करती और महिलाओं को रोजगार देती.


मुद्रा योजना ने चमकाई भावना की किस्मत


जैसलमेर में पटवों की हवेली के सामने तंग गलियों में भावना ब्यूटी पार्लर है. भावना सोनी इसे चलाती हैं. भावना अपनी बेटी लक्षिता का चेहरा चमकाने में व्यस्त रहती हैं. आखिर लक्षिता के ही कहने पर भावना ने ब्यूटी पार्लर का कोर्स किया और यूनियन बैंक से डेढ़ लाख रुपये का लोन पीएम मुद्रा योजना के तहत लिया. इससे पहले आईसीआईसीआई ने लोन देने से मना कर दिया था. भावना हर महीने साढ़े पांच हजार रुपये की किश्त जमा करवा रही हैं. पचास हजार रुपये की महीने की आमदनी हैं और उनका कहना है कि मुद्रा योजना ने उनकी जिंदगी बदल कर रख दी है. भावना का कहना है कि यूनियन बैंक जो पहले लोन देने से हिचक रहा था अब वही बैंक भावना को दो चार लाख का और लोन देने को तैयार हैं. बेटी लक्षिता का लक्ष्य जैसलमेर का सबसे अच्छा ब्यूटी सैलून खोलने का है.


ब्याज से टूटी कल्याण सहाय की कमर


जैसलमेर की भावना सोनी को तो बैंक वाले और ज्यादा लोन देने को तैयार हैं लेकिन अलवर के कल्याण सहाय इस मामले में उनकी तरह खुशकिस्मत नहीं हैं. फर्नीचर का काम करने वाले सहाय की अपनी खुद की दुकान हैं वो भी मेन रोड पर. दुकान के पीछे उनका खुद का गोदाम है. दोनों की कीमत 30-40 लाख से कम नहीं लेकिन पंजाब नेशनल बैंक ने कल्याण सहाय को दो लाख का लोन देने से मना कर दिया. कल्याण सहाय का कहना है कि 50 हजार के लोन से काम नहीं चलता. कल्याण सहाय कागज दिखाते हैं कि कैसे वो एचडीएफसी को दो लाख के लोन पर 91 हजार का तो ब्याज ही दे चुके हैं. उनका कहना है कि बैंक वाले उनकी दुकान-गोदाम देख कर गये पर लोन बढ़ाने को तैयार नहीं हुए.


शमी कौर और बेबी को नहीं मिला मु्द्रा योजना के तहत लोन


शमी कौर भी अलवर से ही हैं. अंडे का ठेला लगाती हैं. उन्होंने 50 हजार का लोन मांगा था. उन्हें अगर ये लोन मिल जाता तो परचून की दुकान खोल लेतीं और बेटे की शादी हो जाती. लेकिन वो ठेला लगाने और बाकी समय दूसरे घरों में बरतन मांजने को मजबूर हैं. शमी कौर के बगल में ही छोटी सी परचून की दुकान चलाती हैं बेबी जिन्हे भी बैंक से पीएम मुद्रा योजना के तहत लोन नहीं मिला.


यह सारे उदाहरण बताते हैं कि किस तरह बैंक मैनेजरों के रहमोकरम पर सारी योजना चल रही है. बैंक कर्मी सामने आने को तैयार नहीं हैं. उनका नाम ना छापने की शर्त पर कहना है कि लोन लेने वाले की नीयत तो देखनी ही पड़ती है और हैसियत भी. इस कारण बहुत बार असली जरुरतमंद लोन से वचिंत रह जाता है. अधिकारी कहते हैं कि उन्हें जुबानी तौर पर कहा गया है कि पैसा डूबा तो वो खुद उसके लिए जिम्मेदार होंगे. मोदी सरकार का दावा है कि पिछले तीन सालों में पीएम मुद्रा योजना के तहत 11 करोड़ खाता धारकों को चार लाख 88 हजार करोड़ का कर्ज दिया जा चुका है लेकिन सरकार ही मानती है कि औसत कर्ज लगभग 45 हजार रुपये ही है. हैरानी की बात है कि तीनों तरह यानि शिशु, किशोर और तरुण योजनाओं के तहत दिये गये कर्ज का औसत 45 हजार रुपये बैठता है लेकिन अगर हम सिर्फ शिशु योजना को ले जिसके तहत 50 हजार तक का कर्ज दिया जाता है तो आंकड़े चौंकाने वाले हैं.


भारत सरकार का ही कहना है कि इसका औसत 2016-17 में सिर्फ 23 हजार से तीस हजार रुपये था. यह 2015-16 में तो इससे भी कम यानी 19 हजार से चार हजार रुपये ही था. सवाल उठता है कि क्या इस राशि में कोई शख्स नया धंधा शुरु कर सकता है. एक अन्य आंकड़ा भी चौंकाने वाला है. पीएम मुद्रा योजना के तहत जितने लोगों को लोन दिया गया उसमें 92 फीसद को 50 हजार तक की शिशु योजना के तहत लोन दिया गया. जबकि किशोर योजना के तहत पांच लाख तक तक का लोन सिर्फ 6.7 फीसद को ही दिया गया. हैरानी की बात है कि पांच से दस लाख तक की तरुण योजना के तहत तो लोन लेने वालों की संख्या महज 1.4 फीसद ही रही.


इससे साफ है कि ज्यादा राशि का लोन देने से बैंक कतरा रहे हैं. उधर मोदी सरकार में वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ला का कहना है कि ना तो बैंकों को हाथ रोककर कर्ज देने के निर्देश दिए गये हैं और ना ही उनके पास ऐसी कोई शिकायत ही आई है. वो कहते हैं कि अगर शिकायत आई तो जरुर जांच होगी और बैंक अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भी होगी. बीजेपी उम्मीद कर रही हैं कि 2019 में मुद्रा योजना से उसके लिए सुनहरे दिन लौट के आएंगे लेकिन ये तभी होगा जब जरुरतमंदों को लोन मिलेगा और उनकी जिंदगी सुनहरी होगी.


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