एजबेस्टन टेस्ट में टीम इंडिया को अभी 84 रनों की जरूरत है. पहली पारी में शानदार शतक लगाने वाले कप्तान विराट कोहली दूसरी पारी में भी क्रीज पर टिके हुए हैं. उन्होंने 43 बेशकीमती रन बनाए हैं. विकेट के दूसरे छोर पर उनके साथ हैं दिनेश कार्तिक. कार्तिक भी बहुमूल्य 18 रन बना कर चुनौती का सामना कर रहे हैं. यूं तो कुल मिलाकर भारत के पास पांच विकेट हैं लेकिन सच ये है कि अगर जीत हासिल करनी है तो भारत को मिडिल ऑर्डर पर ही भरोसा करना होगा. बात अगर लोवर मिडिल ऑर्डर तक चली गई तो कहानी पलट जाएगी.


उमेश यादव, ईशांत शर्मा और मोहम्मद शमी मुश्किल परिस्थितियों में जेम्स एंडरसन और स्टुअर्ट ब्रॉड का सामना कर पाएंगे, ऐसा मुश्किल है. बेहतर होगा कि मैच के चौथे दिन जब भारतीय टीम बल्लेबाजी करने उतरे तो नए सिरे से बस इस बात को ध्यान में रखे कि उसे जीत के लिए सिर्फ 84 रन चाहिए. अव्वल तो कोशिश यही होनी चाहिए कि इन मुकाम तक कप्तान कोहली और दिनेश कार्तिक ही टीम को पहुंचा दें. अगर एकाध चूक हो भी जाती है तो बाकि की जिम्मेदारी हार्दिक पांड्या को निभानी चाहिए. इस टेस्ट सीरीज में उन्हें अपनी उपयोगिता साबित करने का इससे अच्छा मौका शायद नहीं मिलेगा.

टीम इंडिया को इस गलती से बचना होगा   
ये सच है कि चौथी पारी में छोटे लक्ष्य का पीछा करना हमेशा ‘ट्रिकी’ रहता है लेकिन भारतीय टीम के टॉप ऑर्डर ने उसे कुछ ज्यादा ही ट्रिकी बना दिया. पिच से तेज गेंदबाजों को मदद मिल रही थी. इंग्लिश गेंदबाजों ने पूरी ताकत भी झोंक रखी थी. बावजूद इसके टीम इंडिया के बल्लेबाजों को उनका अति रक्षात्मक रवैया भारी पड़ा.

इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पांच में से चार बल्लेबाज विकेट के पीछे विकेटकीपर को कैच थमा कर पवेलियन वापस लौटे. बल्लेबाजों का अंदाज देखकर लगा कि वो मैच जीतने के लिए नहीं बल्कि मैच बचाने के लिए खेल रहे हों. टॉप के तीन बल्लेबाजों में से किसी एक ने अगर 30-35 रनों का भी योगदान दे दिया होता तो ये मैच इस कदर फंसा हुआ नहीं होता.

जिस मैच में स्वाभाविक आक्रामक खेल की जरूरत थी वहां बल्लेबाज क्रिकेट की रूल-बुक के हिसाब से बल्लेबाजी करने की कोशिश करते दिखाई दिए. ऐसे मैचों में वीरेंद्र सहवाग की कमी खलती है. वीरू होते तो चाहे पांच ओवर ही क्रीज पर टिकते लेकिन वो पांच ओवर भी टिक जाते तो स्कोर बोर्ड को उस जगह पर पहुंचा गए होते जहां से जीत आसान हो चुकी होती. शिखर और राहुल दोनों में ये ‘टेंपरामेंट’ है लेकिन आत्मविश्वास की कमी दोनों में साफ दिखाई दी.

हार्दिक पांड्या के लिए गोल्डन चांस
यूं तो विराट कोहली की पूरी कोशिश होगी कि हार्दिक पांड्या को क्रीज पर उतरना ही ना पड़े लेकिन अगर ऐसी नौबत आती है तो हार्दिक पांड्या को अपनी उपयोगिता साबित करनी होगी. वो विराट कोहली के चहेते खिलाड़ी हैं. विराट कोहली उन पर आंख मूंदकर भरोसा करते हैं. अब कप्तान के इस भरोसे पर खरा उतरने का समय है. इस टेस्ट मैच में वैसे भी हार्दिक पांड्या की कोई उपयोगिता अभी तक दिखी नहीं है. उन्होंने पहली पारी में सिर्फ 10 ओवर फेंके थे. उन्हें एक भी विकेट नहीं मिला था. दूसरी पारी में तो कप्तान विराट कोहली ने उनसे गेंदबाजी कराई ही नहीं. बल्लेबाजी में पहली पारी में उनके नाम 22 रन हैं.

उन्हें ये साबित करना होगा कि टीम में उनकी जगह सीमिंग ऑलराउंडर के तौर पर बनती है. ऐसे में अगर एक पारी में उनसे गेंदबाजी ही ना कराई जाए तो इसका मतलब है कि बतौर बल्लेबाज उनका रोल और बढ़ जाता है. इस बात को ऐसे भी समझा जा सकता है कि इंग्लैंड की टीम में बेन स्टोक्स का वही रोल है जो टीम इंडिया में हार्दिक पांड्या का, बेन स्टोक्स का प्रदर्शन देखिए. उन्होने पहली पारी में 21 रन बनाए साथ ही पहली पारी में रहाणे और कार्तिक का अहम विकेट लिया. दूसरी पारी में वो रन तो सिर्फ 6 ही बना पाए लेकिन उन्होंने केएल राहुल को आउट किया. इस तरह उनके खाते में कुल 3 विकेट हैं. हार्दिक पांड्या को इसी तरह का प्रदर्शन करना होगा.