चंडीगढ़ में एक सीनियर आईएएस की बेटी के साथ जो हुआ उसने आधी आबादी की सुरक्षा को लेकर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. बुनियादी सवाल तो ये है कि निर्भया कांड से हमारे समाज ने, सिस्टम ने क्या कोई सीख नहीं ली? शिकायतकर्ता वर्णिका कुंडू बार बार कह रही हैं कि हरियाणा बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला के बेटे विकास बराला ने ना सिर्फ अपनी कार से उनका पीछा किया बल्कि उनका रास्ता रोकने की कोशिश कई बार की गई. यही नहीं उनकी कार के शीशे पर हाथ भी मारा गया.


वर्णिका साफ कह रही हैं कि मैं खुशकिस्मत थी कि बच गई वरना उनका इरादा मुझे किडनैप करने का लग रहा था. मुझे रेप और मर्डर की भी आशंका थी. इतने गंभीर आरोपों के बाद भी आखिर ऐसा क्या हुआ कि बीजेपी नेता का बिगड़ैल बेटा थाने से ही छूट गया.

दरअसल इस पूरे मामले में एक बात तो साफ नजर आ रही है कि विकास बराला ने अपने रसूख के दम पर कानून को ठेंगा दिखाया है. अगर आपने पिंक फिल्म देखी हो तो उसके कई दृश्य वर्णिका की कहानी सुनकर आपकी आंखों के आगे तैरने लगेंगे. कैसे एक रसूखदार शख्स सिस्टम का इस्तेमाल कर सच को झूठ और झूठ को सच बना देता है. कैसे अपनी बिगड़ैल औलाद को बचाने के लिए एक राजनेता सत्ता का दुरुपयोग करता है.

अगर आपने शनिवार को चंडीगढ़ के डीएसपी सतीश कुमार के बयान पर गौर फरमाया हो तो आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं कैसे सत्ता के दबाव में गड़बड़झाला हुआ होगा. डीएसपी सतीश कुमार दिन के ढाई बजे आरोपी के अपराध को मीडिया के सामने गैर जमानती बता रहे थे और शाम 5 बजते बजते उनके सुर बदल गए. शाम 5 बजे उन्होंने कैमरे के सामने बयान दिया कि बराला के खिलाफ जो धाराएं लगाई गईं है वो जमानती हैं और शायद यही वजह रही कि रसूखदार बाप का बिगड़ैल बेटा आराम से खुले में घूम रहा है, तो बड़ा सवाल यही कि शनिवार को ढाई घंटे में ऐसा क्या हुआ कि पुलिस की पूरी थ्योरी बदल गई? दरअसल इस मामले में कई पेंच हैं-


वर्णिका कुंडु अगर कह रही हैं कि लड़कों ने अपहरण की कोशिश की तो पुलिस ने वर्णिका की इस शिकायत के आधार पर FIR में किडनैपिंग की धाराएं क्यों नहीं लगाई? चंडीगढ़ की जिन सड़कों पर वर्णिका कुंडु का पीछा किया गया उन रास्तों पर लगे 9 CCTV कैमरों में से 6 कैमरों की फुटेज गायब कैसे हुई? क्या जानबूझ कर सुनियोजित तरीके से केस को कमजोर किया जा रहा है?

इस घटना ने एक बड़ा सवाल खड़ा किया है कि अगर आरोपी एक रसूखदार नेता का बेटा नहीं होता तो क्या ऐसे गंभीर मामले में थाने से ही छूट जाता? वो भी तब जबकि शिकायतकर्ता एक सीनियर IAS की बेटी है. अब ऐसे में जरा ये भी सोचिए अगर किसी आम लड़की के साथ ऐसी घटना हुई होती तो क्या ये मामला थाने की चौखट पर ही दम नहीं तोड़ देता? लीपापोती करने वालों को क्या इतनी भी शर्म नहीं कि जिस राज्य में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की आबादी कम होने की वजह से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे नारे देने पड़ते हैं, वहां अपराधियों को बचाकर हम अपनी बेटियों को क्या संदेश देंगे ?

इन्हीं कुछ सवालों के साथ बहादुर बेटी वर्णिका को सलाम!

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