चुनाव में सिर्फ वन प्लस वन टू नहीं होता है, कभी शून्य तो कभी ग्यारह भी होता है. राजनीति में सिर्फ अकंगणित की बाजीगरी नहीं चलती है, बल्कि कभी अकंगणित पर केमिस्ट्री भारी हो जाता है. अंकगणित और केमिस्ट्री की दोस्ती और दुश्मनी पर कभी कभी कलाबाजी भी गुल खिला सकती है. यही वजह है कि जनता, पत्रकार, नेता से लेकर चुनाव विश्लेषक तक की नजर उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई है, लेकिन एग्ज़िट पोल ने महासस्पेंस पैदा कर दिया है.


एग्ज़िट पोल में एक तरफ बीजेपी की जीत दिखाई जा रही है तो दूसरी तरफ महागठबंधन की जीत दिख रही है. जिन पत्रकारों ने चुनावी कवरेज के दौरान उत्तर प्रदेश का दौरा किया था वो अलग अलग ताल ठोंक रहे हैं. हालांकि पत्रकारों की भविष्यवाणी में भी दो फाड़ है, जबकि बीजेपी और महागठबंधन के नेता अलग अलग दावे कर रहे हैं.


रविवार को मुख्य रूप से आठ एजेंसियों ने उत्तर प्रदेश के नतीजे को लेकर भविष्यवाणी की, जिसमें तीन एजेंसियों ने बीजेपी को कम सीटें दी हैं और महागठबंधन को ज्यादा, जबकि इसके उलट पांच एजेंसियों ने बीजेपी को ज्यादा सीटें दी हैं और महागठबंधन को कम. महागठबंधन को सबसे ज्यादा एबीपी न्यूज-नील्सन ने 45 सीटें दी हैं और बीजेपी को 33 सीटें, जबकि इंडिया-टुडे एक्सिस ने बीजेपी को 62-68 सीटें तो महागठबंधन को 10-16 सीटें दी हैं. ऐसे में किसका एग्ज़िट पोल सही है, इसका पता 23 मई को ही चलेगा.


उत्तर प्रदेश का आंकलन करना आसान नहीं
कहा जाता है कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तर प्रदेश की राजनीतिक जमीन से गुजरता है. जाहिर है कि सबकी नज़र उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई है, लेकिन उत्तर प्रदेश ऐसा प्रदेश है, जिसको लेकर अनुमान लगाना आसान नहीं होता. खासकर जीत और हार को लेकर आठ एजेंसियां बंटी हुई हैं.


एबीपी न्यूज़- नीलसन, रिपब्लिक टीवी- सीवोटर और इंडिया न्यूज- पोलस्ट्रेट ने महागठबंधन को ज्यादा सीटें दी हैं. वहीं, इंडिया टुडे- एक्सिस, न्यूज 24-चाणक्या, टाइम्स नाऊ- वीएमआर, इंडिया टीवी- सीएनएक्स और न्यूज 18- आईपीएसओएस ने बीजेपी को ज्यादा सीटें दी हैं. ऐसे में एग्ज़िट पोल के आंकड़ों में मतभेद हैं. तो अब सवाल ये है कि उत्तर प्रदेश में किस पार्टी की जीत होगी. नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की जीत होगी या मायावती-अखिलेश यादव के नेतृत्व में महागठबंधन की जीत होगी. किसकी जीत होगी ये कहना आसान काम नहीं है, क्योंकि यूपी में बीजेपी कभी 10 सीटों पर लुढ़क जाती है तो कभी 73 सीट हासिल करके इतिहास रच देती है.


जाहिर है कि इतना उतार चढ़ाव हो तो कुछ भी हो सकता है. 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में जीत का डंका पीटने वाली बीजेपी को 2018 के गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा के उपचुनाव में महाबंधन से जबर्दस्त पटखनी मिली. तभी से महागठबंधन की शक्ति को लेकर उत्तर प्रदेश में हड़कंप मच गया है. जब इस गठबंधन को अधिकारिक रूप से अमलीजामा पहनाया गया, तो इसमें आरएलडी नेता अजित सिंह भी शामिल हो गये.


तभी से महागठबंधन की शक्ति की जय जयकार हो रही है. इसे समझने के लिए 2014 लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव का जिक्र करना जरूरी है. 2014 के लोकसभा के चुनाव में बीजेपी गठबंधन और महागठबंधन के बसपा, सपा और आरएलडी के वोटों को जोड़ भी दें तो महागठबंधन पर बीजेपी गठबंधन की मामूली बढ़त है, जबकि 2017 के विधानसभा की बात करें, तो महागठबंधन बीजेपी गठबंधन से 3 फीसदी वोट आगे हैं. इसी आंकड़े ने महागठबंधन का हौसला बढ़ा दिया है.


अंकगणित और केमिस्ट्री की लड़ाई
चुनाव सिर्फ अंकगणित से नहीं चलता है, बल्कि केमिस्ट्री का भी खास महत्व है. इसी तरह का गठबंधन विवादित बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद 1993 में भी एसपी-बीएसपी के बीच किया गया था. लेकिन एसपी-बीएसपी के गठबंधन के बावजूद बीजेपी मामूली रूप से बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन तबके चुनाव और अबके चुनाव में काफी फर्क आ गया है. अब बीजेपी के पास नरेन्द्र मोदी जैसा निर्णायक नेता है, यही नहीं 1993 में बीजेपी को सवर्ण और वैश्य की पार्टी कहा जाता था. अब बीजेपी ओबीसी, दलित और आदिवासियों में अपनी पैठ बना चुकी है.


नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू की गई योजना का लाभ गांव और गरीब परिवारों को मिल रहा है. चाहे जनधन योजना हो, उज्जवला योजना, शौचालय की योजाना हो, स्वास्थ्य की योजान हो या किसानों के खाते में सालाना 6000 रूपए ट्रांसफर करने की बात हो. ये बीजेपी की केमिस्ट्री है, जो महागठबंधन के अंकगणित को चैलेंज कर रही है और पाकिस्तान में एयर स्ट्राईक के बाद जाति समीकरण टूटने की भी बात सामने आ रही है. जहां राष्ट्रवाद के मुद्दे पर जाति की दीवार थोड़ी कमजोर होने की बात सामने आ रही है. सवाल ये भी है कि क्या सिर्फ गठबंधन करने से बीएसपी और एसपी के वोट एक दूसरे की पार्टी में ट्रांसफर हो जाएंगे? हालांकि इस गठबंधन को अब मुस्लिम के करीब 18 फीसदी वोट एकमुश्त मिलने की संभावना है. कांग्रेस में मुस्लिम वोट लौटने की संभावना कम दिख रही है.


अखिलेश और मायावती ने सिर्फ जाति के आधार पर गठबंधन किया है, जबकि मोदी के पास राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, परिवारवाद के खिलाफ जंग और विकासवाद जैसे भी मुद्दे हैं. वहीं,  महागठबंधन बेरोजगारी, जीएसटी, नोटबंदी और नफरत का मुद्दा उठा रही है. अखिलेश यादव आवारा पशु को लेकर भी योगी सरकार पर हमला बोल रहे हैं. साफ है कि महागठबंधन का अंकगणित चलता है तो बीजेपी की हार होगी और अगर मोदी की केमिस्ट्री चलती है तो महागठंधन की हार होगी. अब हाथ कंगन को आरसी क्या. किसकी जीत होगी और किसकी हार होगी, बुधवार को खुलासा हो जाएगा.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)