एक वक्त था जब शेन वॉर्न को छक्का मारिए तो वो क्रीज पर वापस आकर बल्लेबाज को घूर कर देखते थे. बल्लेबाज ने यही हिम्मत अगर ग्लेन मैग्रा या ब्रेट ली के खिलाफ दिखाई तो अगली गेंद पर ‘बाउंसर’ के लिए तैयार रहने में भी बल्लेबाज की भलाई रहती थी. स्टीव वॉ को दुनिया के सबसे अक्खड़ कप्तानों में गिना जाता था. मैदान में आक्रामकता ही कंगारुओं की पहचान थी. इस आक्रामकता के अति आक्रामकता में बदलने की भी कई घटनाएं विश्व क्रिकेट के इतिहास में दर्ज हैं.


उस ऑस्ट्रेलियाई टीम के कप्तान स्टीव स्मिथ अब कहते हैं कि वो टीम इंडिया के खिलाफ जीतने की कोशिश करेंगे. उनके गेंदबाजों को सर के ऊपर से शॉट मारिए तो वो चुपचाप निगाहें झुकाए अपने बॉलिंग मार्क की तरफ लौट जाते हैं. जो ‘रूथलेस’ क्रिकेट ऑस्ट्रेलियाई टीम की पहचान थी वो अब उनकी टीम से नदारद है. जिस ऑस्ट्रेलिया के खाते में 1999, 2003 और 2007 का लगातार तीन विश्व कप जीतने का रिकॉर्ड है उसकी टीम में वो जीत की भूख नहीं दिखाई दे रही है.

बिना संघर्ष किए हार रही है कंगारुओं की टीम  
सीरीज में पहली बार कंगारुओं ने तीन सौ रनों के आस पास का स्कोर बनाया. मुश्किल ये कि वो पिच साढ़े तीन सौ रनों के लिए बनी थी. लक्ष्य का पीछा करते हुए भारतीय टीम की बल्लेबाजी को देखकर ये बात समझ आ भी गई. टीम इंडिया ने 13 गेंद पहले ही 294 रनों का लक्ष्य हासिल कर लिया. अगली 13 गेंद पर भारतीय टीम आसानी से 30-40 रन जोड़ सकती थी. मैच से पहले इस तरह की उम्मीद लगाई जा रही थी कि ऑस्ट्रेलियाई टीम अगर पहले बल्लेबाजी करके बड़ा स्कोर खड़ा करती है तो उसके गेंदबाज भारतीय बल्लेबाजों पर दबाव बना सकते हैं. यही वजह है कि ऑस्ट्रेलिया ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी का फैसला किया लेकिन उसके बल्लेबाज इतने रन नहीं जोड़ पाए जो भारतीय बल्लेबाजों पर दबाव कायम कर सकें.

आपको याद दिला दें कि पिछले दोनों मैच में ऑस्ट्रेलिया को लक्ष्य का पीछा करते हुए हार का सामना करना पड़ा था. कंगारुओं को शुरूआत अच्छी मिली थी. पहला विकेट 70 रन पर गिरा. इसके बाद दूसरा विकेट 224 रनों पर गिरा. दूसरे विकेट के तौर पर एरॉन फिंच शतक लगाकर आउट हुए. उस वक्त तक कंगारुओं की पारी में करीब 12 ओवर का खेल बचा था लेकिन इसके बाद रन गति को बढ़ाने की कोशिश में ऑस्ट्रेलिया के बाकी बल्लेबाज जल्दी-जल्दी आउट होते चले गए और आखिरी के 12 ओवर में ऑस्ट्रेलिया करीब 70 रन ही जोड़ पाई. आधुनिक क्रिकेट में आखिरी के 12 ओवर में सौ रन आसानी से बनते हैं. मौजूदा विश्व चैंपियन टीम से इस तरह के प्रदर्शन की उम्मीद नहीं रहती.

डेविड वॉर्नर की खामोशी है बड़ा कारण
ऑस्ट्रेलियाई टीम की हार में डेविड वॉर्नर की फॉर्म का बहुत लेना देना है. पिछले करीब एक दशक में ऑस्ट्रेलियाई टीम के प्रदर्शन में डेविड वॉर्नर का बड़ा रोल रहा है. वो विश्व क्रिकेट के सबसे आक्रामक बल्लेबाजों में शुमार हैं. इस सीरीज के अब तक खेले गए तीनों मैच में वो बेरंग रहे हैं. डेविड वॉर्नर विदेशी पिचों पर भी विरोधी टीम के गेंदबाजों की धुनाई करने के लिए जाने जाते हैं. जिससे वो गेंदबाजों की सोच पर ‘अटैक’ करते हैं. मौजूदा सीरीज में वो ऐसा करने में नाकाम रहे हैं.

इंदौर वनडे में उन्होंने शुरूआत अच्छी की लेकिन उसके बाद वो अपनी पारी को एक बड़ी पारी में बदलने में नाकाम रहे. उससे पहले चेन्नई और कोलकाता में तो उन्हें अच्छी शुरूआत भी नहीं मिली थी. चेन्नई में वॉर्नर ने 25 रन बनाए थे जबकि कोलकाता में सिर्फ 1 रन बनाकर वो पवेलियन लौट गए थे.

ऐसा नहीं है कि वॉर्नर के अलावा टीम में अच्छे बल्लेबाजों की कमी है. एरॉन फिंच, स्टीव स्मिथ और ग्लेन मैक्सवेल ऐसे बल्लेबाज हैं जो अकेले दम पर मैच जिताने की कूवत रखते हैं. इंदौर में फिंच ने शानदार पारी खेली भी. बावजूद इसके टीम में जो सामंजस्य दिखना चाहिए उसकी कमी दिख रही है. यही वजह है कि अब तक सीरीज के तीनों मैच में टीम इंडिया को एकतरफा जीत हासिल हुई है.