गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है. ऐसे में दोनों दलों की नजरें एक करोड़ पाटीदारों पर हैं जिनका वोट निर्णायक साबित होगा. लेकिन क्या गांव और शहर के पाटीदार और क्या अमीर गरीब पाटीदार एक जैसा सोचते हैं? क्या पाटीदारों के लिए खेती का मुद्दा बढ़ा है या आरक्षण का? क्या पाटीदार बीजेपी को हराना चाहते हैं या फिर सबक सिखाना चाहते हैं? क्या हार्दिक पटेल के साथ की भीड़ तमाशाई है या वोट में तब्दील होगी? यह सारे सवाल आपको परेशान कर रहे होंगे. आइए इनके जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं.


अहमदाबाद राजकोट राजमार्ग पर नीबड़ी विधानसभा क्षेत्र के तहत आता है मोरवाड़ गांव. यहां हमें मिले बाबू भाई. अपने परिवार के साथ कपास के खेत में कपास चुनते हुए. पत्नी भी और बच्चे भी इस काम में बाबू भाई का साथ दे रहे थे. बाबू भाई दुखी हैं. उनका कहना है कि पानी की कमी के चलते कपास के पौधे सूख गये हैं. ऊपर से जिस कपास के भाव पहले हजार रुपए प्रति बीस किलोग्राम थे वह अब घटकर 900 रुपये पर आ गये हैं. बाबू भाई के पूरे परिवार का पेट इसी कपास की खेती से भरता है लेकिन इस बार गुजारा मुश्किल नजर आता है. वह कहते हैं कि पहले कपास के भाव 1200 से 1400 रुपये तक के थे जो अब घटकर 900 पर आ गये हैं. अपने खेत में कपास के सूखे पौधे दिखाते हुए कहते हैं कि बीजेपी नर्मदा का पानी गांव गांव पहुंचाने का दावा करती है लेकिन उनके खेत में तो पानी का कमी के चलते फसलें सूख रही हैं.


बाबू भाई पिछले 22 साल से बीजेपी को वोट देते आ रहे हैं लेकिन इस बार उनका कहना है कि उस पार्टी को वोट देंगे जो उन जैसे किसानों का भला करे और उनकी नजर में ऐसी पार्टी कांग्रेस है.


अहमदाबाद से राजकोट की तरफ जाते हुए रास्ते में आता है नया सुदामड़ा गांव. यह भी नीबड़ी विधानसभा के तहत आता है. पूरे गांव में करीब 500 लोग रहते हैं और 95 फीसद पाटीदार जो खेती का काम करते हैं. वैसे भी गुजरात में कहा जाता है कि विधानसभा चुनाव की चाबी पाटीदारों के पास है. कुल 182 सीटों में से करीब 80 पाटीदार सीटें कहलवाती है. अभी तक करीब 80 फीसद पाटीदार बीजेपी को ही वोट देते आए हैं. लेकिन इस बार गांव का पाटीदार किसान अपनी ही पार्टी से नाराज नजर आता है. ऐसे में पूरा चुनाव पाटीदार बनाम बीजेपी या यूं कहा जाए कि पाटीदार बनाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होता जा रहा है. पाटीदारों की नाराजगी साफ दिखाई देती है लेकिन क्या मोदी इन नाराजगी को कम कर सकेंगे? हमने कुछ पाटीदार किसानों से बात करने की कोशिश की.


पुरुषोतम भाई पटेल साठ साल के हैं. चार एकड़ में कपास और मूंगफली की खेती करते हैं. वह कहते हैं कि खेती करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है. बारिश भी कम होने लगी है. सिंचाई की कोई सुविधा नहीं है और कई बार अकाल सूखा पड़ने पर मजदूरी तक करनी पड़ती है. पुरुषोतम भाई का कहना है कि मोदी जी दिल्ली चले गये और हम लोगों को भूल गये. पीछे से जो भी मुख्यमंत्री बना उसने किसानों के हित के लिए कुछ नहीं किया और मोदी जी से भी सच्चाई छुपाई जा रही है. वह बीजेपी को 22 सालों से वोट देते आ रहे हैं लेकिन इस बार उनका कहना है कि बीजेपी नेताओं में बहुत चर्बी चढ़ गयी है और उसके कम करना जरुरी हो गया है. वह बीजेपी को हराना नहीं चाहते. वह चाहते हैं कि बीजेपी की 85-90 सीटों के साथ ही सरकार बननी चाहिए ताकि वह हमेशा सत्ता जाने के दबाव में रहे और किसानों के भले के लिए काम करे. उनके सुर में सुर मिलाते हैं जसराज भाई पटेल जो बीजेपी के कटटर समर्थक रहे हैं. उनका कहना है कि कपास के भाव नहीं मिल रहे , नर्मदा का पानी नहीं मिल रहा और बच्चों के लिए रोजगार का संकट है. जसराज भाई बीजेपी के अलावा किसी अन्य को वोट देना नहीं चाहते. कहते हैं कि इस बार वोटिंग के दिन घर पर ही रहेंगे या फिर नोटा दबा कर चले आएंगे.


रघुभाई पटेल के पास आठ एकड़ जमीन है. वह मूंगफली कपास करते हैं. कहते हैं कि खेती करने में अब मुनाफा कहां है? खर्चा निकलता है बस. रघुभाई पटेल ने पिछली बार बीजेपी को वोट दिया था. इस बार कहते हैं कि कांग्रेस को चांस देना चाहिए. पांच साल काम नहीं किया तो उसे भी उखाड़ देंगे. एबीपी न्यूज सीएसडीएस का सर्वे बताता है कि उम्रदारज पाटीदार बीजेपी से इतने खफा नहीं है जितने कि युवा हैं. लेकिन नया सुदामड़ा जैसे गांवों में दोनों ही खासे नाराज दिखते हैं.


संजय पटेल तीस साल के हैं. आठवीं पास हैं. बीस बीघा जमीन है. उनका कहना है कि रोजगार नहीं है. मजबूरी में खेती करनी पड़ती है जिससे सिर्फ खाना पीना ही चलता है. वह कहते हैं कि हार्दिक पटेल की पटेलों को आऱक्षण की मांग ठीक है और कांग्रेस वायदा पूरा करेगी. इस बार वोट किसे देंगे इस पर वह चुपी साध जाते हैं. रमेश भाई पटेल का कहना है कि मोदी जी सही बोलते हैं कि वह नर्मदा का पानी कच्छ और अमरेली तक ले गये हैं. यह सही बात है कि दो बड़ी नहरे बनी हैं जो कच्छ और अमरेली तक गयी हैं लेकिन बीच में उनके गांव छूट गये. बड़ी नहर से गांवों को जोड़ने वाली उप नहरें जो बननी चाहिए थी वह बननी बाकी हैं. इसपर भी मोदी जी को ध्यान देना चाहिए था. उनकी बगल में बैठे युवा पाटीदार उमेश भाई पटेल का कहना है कि आरक्षण पर बीजेपी ने लॉलीपाप दिया था तीन साल तक और अब अगर कांग्रेस ने भी लॉलीपाप दिया तो उसको भी हम उखाड़ देंगे और हमारा आंदोलन चालू रहेगा. उमेश भाई कहते हैं कि अगर कांग्रेस ने अपने वायदे पूरे नहीं किये तो इस तरह उखाड़ेंगे कि वह फिर पचास सालों तक सत्ता में नहीं आ पाएगी.


गुजरात में कहावत है कि पाटीदार पैदा होते ही पानी के साथ कमल को निगल जाते हैं यानि वह कमल के हो जाते हैं और कमल उनका हो जाता है. युवराज भाई पटेल को यह कहावत सुनाई तो कंधे पर फावड़ा टांगे वह हंसने लगे. कहने लगे कि इस बार उसी पानी में कमल को डुबो देंगे. लेकिन हाई-वे के उस तरफ बख्तपुर गांव में पुरुषोतम भाई पटेल का कहना है कि पटेल अभी भी बीजेपी के साथ हैं और और भले ही सिंचाई के लिए पानी नहीं पहुंचा हो लेकिन गांव में पीने का पानी पहुंच गया है. सड़कें बनी हैं और साथ ही बिजली भी आई है. बख्तपुर गांव में कोमल और ट्विंकल दो बहनों से बात हुई. दोनों ने आठवीं पास करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी है क्योंकि घरवाले आगे पढ़ाना नहीं चाहते हालांकि दोनों पढ़ना चाहती हैं और उसी स्कूल में टीचर बनना चाहती हैं जहां से आठवीं पास की है. दोनों का कहना है कि वह हार्दिक पटेल के आरक्षण के बारे में ज्यादा नहीं जानती और गांव में जरूर अब पानी के लिए वैसे झगड़े नहीं होते जैसे कि पहले हुआ करते थे. दोनों से बात हो ही रही थी कि बीच में उनकी दादी लाली बाई बीच में आ गयी और कहने लगी कि बिजली बहुत कटती है और पानी भी कम आता है.


ऐसा नहीं है कि पूरे गुजरात के पाटीदार खफा है. सौराष्ट्र के शहरी इलाकों में पाटीदार बीजेपी के साथ खड़े दिखाई देते हैं. उन्हे लगता है कि 22 सालों में बीजेपी ने गुजरात का बहुत विकास किया है और विकास निरंतर चलने वाली क्रिया है.


कुछ का कहना है कि कांग्रेस जाति के नाम पर चुनाव लड़ रही है और बीजेपी विकास के नाम पर. युवा पाटीदार जरूर आरक्षण के मसले पर बीजेपी से नाराज नजर आते हैं. राजकोट के 25 साल के पाटीदार उमेश भाई का कहना है कि जब कांग्रेस ने आरक्षण का फार्मूला दिया तो बीजेपी ने कहा कि संविधान में पचास फीसद से ज्यादा आरक्षण देने का प्रावधान नहीं है लेकिन जब तीन साल पहले बीजेपी ने आरक्षण का बिल विधानसभा में पारित करवाया था तब भी तो सीमा पचास फीसद पार कर रही थी. तब क्यों बीजेपी ने सच्चाई छुपाई? उमेश भाई जैसे पाटीदार खेड़ा , आनंद और अहमदाबाद में मिल जाते हैं जो मानते हैं कि हार्दिक पटेल ने कांग्रेस के साथ जाकर अपनी साख खो दी है .


पीताम्बर पटेल अहमदाबाद में सरदार पाटीदार चौक के पास पान की दुकान करते हैं. उनका कहना है कि पटेलों को आरक्षण का लाभ मिला तो जरुर उनका भविष्य सुधरेगा लेकिन कांग्रेस का फॉर्मूला सुप्रीम कोर्ट में अटक जाएगा. वह कहते हैं कि हार्दिक पटेल की रैली में भावनात्मक रुप से युवा पाटीदारों को बेवकूफ बना रहे हैं. पीताम्बर भाई का कहना है कि पढ़े लिखे लोग भी नहीं सोच पा रहे हैं कि आरक्षण उनको मिलने वाला नहीं है. मोदी सरकार ने जो नया ओबीसी आयोग बनाया है और उसे संवैधानिक दर्जा दिया है उससे ही पटेलों और दूसरी जातियों को आरक्षण मिल सकता है. वह हार्दिक पटेल की राजनीति को समाज को बांटने वाली करार देते हैं. दुकान के बाहर ही मिल गये भुवनेश त्रिवेदी. हंसते हुए कहने लगे कि वह पाटीदार तो नहीं हैं लेकिन पाटीदारों के साथ रहते हुए पाटीदार जैसे ही हो गये हैं. उन्हें लगता है कि कोई असर नहीं है हार्दिक पटेल का और यह सारा माहौल बनाया हुआ है. हार्दिक के साथ न तो पाटीदार हैं और न ही आम जनता. वह हाथ से इशारे से कहते हैं कि मोदीजी की जीत पक्की है और 150 सीटों के साथ बीजेपी सत्ता में फिर से काबिज होने वाली है.


लेकिन बैंक में नौकरी करने वाले रोहित पटेल को इस दावे में यकीन नहीं है. वह कहते हैं कि पाटीदारों में कुछ नाराजगी जरूर है लेकिन ऐसे पाटीदार मुश्किल से दस से पन्द्रह फीसद ही हैं जो बीजेपी को नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे. रोहित कहते हैं कि वह शहरों में तो विकास देख ही रहे हैं. अब चौबीस घंटे बिजली आती है, हाई-वे बने हैं और शहरों में नौकरी के मौके पैदा हुए हैं. वह 22 सालों से बीजेपी को वोट देते आए हैं और इस बार भी कमल का बटन ही दबाने का इरादा रखते हैं. वैसे हार्दिक पटेल की रैलियां पूरे चुनाव में अलग ही दिखती हैं. लोग तो यहां तक कहते हैं कि राहुल गांधी की रैलियों में भी हार्दिक पटेल के लोग जा रहे हैं इसलिए वहां भीड़ नजर आ रही है. हार्दिक की रैलियों के आगे प्रधानमंत्री मोदी की रैलियां फीकी ही नजर आती है. कुछ जगह तो दस पन्द्रह हजार की भीड़ ही जुटने की खबरें आई हैं. उधर हार्दिक की रैली में युवा ज्यादा आते हैं. उत्साह में जय सरदार के नारे लगाते हैं. चक दे इंडिया फिल्म का गाना चलता रहता है. हार्दिक की एक एक बात पर तालियां बजती हैं. लोग हर बात पर रेस्पॉन्स करते हैं. हार्दिक के एक इशारे पर मोबाइल की लाइट जलाते हैं और आरक्षण के समर्थन में नारे लगाते हैं. अगर ऐसी भीड़ सिर्फ तमाशा देखने आती है तो बीजेपी को चिंता करने की जरूरत नहीं है लेकिन अगर वह वोट में बदलती है तो फिर बीजेपी को भारी पड़ सकता है.


कुल मिलाकर गुजरात में एक करोड़ पाटीदार वोटर हैं. इनमें से करीब 90 लाख बीजेपी को वोट देते रहे हैं. जानकारों का मानना है कि अगर इन 90 फीसद में से चालीस फीसद टूटते हैं तो फिर कांग्रेस सत्ता में आ सकती है. पूरा चुनाव कितने प्रतिशत टूटेंगे पर आकर अटक गया है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)