दूधनाथ सिंह हिन्दी लेखकों के उस नक्षत्र मंडल का अभिन्न हिस्सा थे जिसके कुछ ही सदस्य अब बचे हैं लेकिन सबकी चमक सब काल तक रहेगी. इस नक्षत्र मंडल में नामवर सिंह , कमलेश्वर, मार्कंडेय, शेखर जोशी,  रवीन्द्र कालिया, ज्ञान रंजन और काशी नाथ सिंह , लक्ष्मी कांत वर्मा, जगदीश गुप्त, सत्य प्रकाश मिश्र, कमला प्रशाद और अमरकांत जैसे दिग्गज लेखक शामिल थे.

दूधनाथ जी हिन्दी के एक विवादास्पद कथाकार थे. उनकी कहानियां अक्सर उनके ही किसी दोस्त के जीवन चरित का बारीक़ ऑब्जर्वेशन होती थी. हुन्डार और नमो: अंधकारम कहानियां इसके उदाहरण हैं. लेकिन उनके ये दोस्त भी उनका लोहा मानते थे क्योंकि उनकी कहानियां साधारण ऊंचाई से ऊपर होती थीं.

अंग्रेज़ी और हिन्दी के बड़े पाठक होने के साथ साथ वो बांग्ला के भी अध्येता थे. रचना में कम से कम शब्दों से काम चलाने पर जोर देते थे. और जीवन में लम्बी बतकही पर और ठहाके तो जैसे उनके जीवन का हिस्सा थे.

घोर पारिवारिक थे. परिवार की चहलपहल आसपास न हो तो लेखन नहीं कर पाते थे. दशकों तक विभिन्न साहित्यिक शहरों के कॉफ़ी हाउसों, व्याख्यानों, विश्वविद्यलयों और अन्य तरह के जमावड़ों की वो रौनक रहे.

कथाकार दूधनाथ सिंह की नपनी कहानी हिन्दी की चुनिंदा प्रगतिशील कहानियों में शुमार होगी ये बात सीनियर सर्जन डॉक्टर ज्योति भूषण जी से परसों हो रही थी. देर तक हम दूधनाथ जी की लेखकीय धार पर बात करते रहे.

आज उनके न रहने की सूचना एसएफआई के पूर्व ऱाष्ट्रीय अध्यक्ष सुधीर सिंह जी से मिली. सुधीर सिंह ने जिस तरह दूधनाथ जी का अंतिम समय तक हर मुश्किल में साथ दिया उसके लिए हिन्दी साहित्य समाज उनका आभारी रहेगा.

दूधनाथ जी की उपस्थित ने खास तौर पर इलाहाबाद को एक विशेष आभा दे रखी थी. पिछले पचास साल से इलाहाबाद में उनकी हलचल थी. बीस बरस से तो मैं ही देख रहा था कि विश्विद्यालय के छात्र उनसे किस कदर प्रभावित रहते आए हैं. भाषा का मोजैक रचने वाले ऐसे लेखक का साथ और आशीर्वाद पा के मेरे जैसे छात्र अपने को खुशकिस्मत समझते हैं.

दूधनाथ जी सरल व्यक्ति नहीं थे. बेहद जटिल थे. लेकिन एक धार थी उनमें जिसके आकर्षण से सिर्फ कुंद ही बच सकते थे. हांलांकि सामान्यतः आमजनों के लिए वे सदा ही गरिमामय,  सहज और सरल थे.

दूधनाथ जी उन बेहद विरल लेखकों में थे जिनसे मिलने पर उनकी बातों से ये अहसास होता था कि ये सिर्फ ज्ञानी नहीं बल्कि कथाकार और कवि हैं. वे बेहद मूडी और पजेसिव थे. खराब लिखने वालों को हिकारत से देखते थे. लेकिन ऐसे लोगों को कभी अपमानित नहीं करते थे. अपमान करने की हद तक गुस्सा वो सिर्फ़ हमारे जैसे कुछ लड़कों से करते थे क्योंकि जानते थे कि ये लड़के मेरे आकर्षण क्षेत्र से बाहर अब कभी नहीं जा सकते.

और ये सच है कि हम उनके लेखकीय हुनर के बंदी हैं. बारह जनवरी लगते ही रात 12:06 पर उनका निधन हुआ. आपको हम हिन्दी के पाठक कभी अलविदा नहीं कह पाएंगे दूधनाथ जी!