लोकतंत्र की यही खूबसरती है. वह जिसे सिर चढ़ाता है उसे ऐसी पटकनी देता है कि वह कहीं का नहीं रहता. इससे एक बात और पुष्ट हुई कि, आप लोगों को लंबे समय तक मूर्ख नहीं बना सकते. कभी न कभी आपकी झूठ की पोल खुल ही जाएगी. यही दिल्ली विधानसभा चुनावों में हुआ. आम आदमी पार्टी और इसके नेता अरविंद केजरीवाल ने जिस दिल्ली को अपनी प्रयोगभूमि बनाया था,वहां उनकी ऐसी दुर्गति होगी,इसकी कोई कल्पना नहीं की थी. उनका अहंकार उन्हें ले डूबा. वह तो डूबे ही, उनके साथ मनीष सिंसौदिया और सत्येंद्र जैन भी डूब गए. तीसरे बड़े नेता सौरभ भारद्वाज भी हार गए.
किसी तरह स्थानापन्न मुख्यमंत्री आतिशी सिंह अपनी सीट बचाने में कामयाब रहीं, लेकिन बहुत ही कम अंतर से उनकी जीत कोई मायने नहीं रखती. अरविंद केजरीवाल मतगणना शुरू होने के साथ ही पिछडते नजर आ रहे थे. बीच में थोड़ी देर उन्होंने कुछ बढत बनाई,लेकिन फिर जो पीछे हुए, तो पीछे ही रह गए. उन्हें भाजपा के प्रवेश वर्मा ने 4025 मतों से हराया. एक बात ध्यान देने की है जब भी दिल्ली में सत्ता परिवर्तन हुआ है, यहां महिला मुख्यमंत्री थीं.
चुनाव नतीजों के सामने आते ही राजनीतिकि हलचल तेज हो गई है. दिल्ली के सामान्य प्रशासानिक विभाग ने आदेश दिया है कि सभी अधिकारी सचिवालय पहुंचें और कोई भी फाइल या डाटा बाहर न जाने पाये. हर कंप्यूटर और फाइल सुरक्षित रखी जाए. नई दिल्ली सीट से अरविंद केजरीवाल को हराने के बाद भाजपा नेता प्रवेश वर्मा ने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की. अमित शाह ने ट्वीट कर कहा है कि यह मोदी पर दिल्ली के विश्वास की जीत है और नये युग की शुरुआत है. दिल्ली की जनता ने भ्रष्टाचार के शीशमहल को ध्वस्त किया है. उसने मोदी की गारंटी पर भरोसा किया.
इस चुनाव नतीजों ने एक्जिट पोल की विश्वसनीयता पर भी मुहर लगाई है. दस में से आठ पोल में केजरीवाल की हार और भाजपा की सरकार बनते देखी गई थी लेकिन अमूमन लोग इसपर पूरा भरोसा नहीं कर पा रहे थे. जो एक्जिट पोल भाजपा की सरकार बनने का पूर्वानुमान कर रहे थे,वे 35 से 50 तक सीटें दिला रहे थे. लेकिन अंतिम नतीजों ने भाजपा को अधिकतम सीटों तक पहुंचाया. एक बार तो उसकी 52 सीटों पर जीत होती दिख रही थी. फिर आम आदमी पार्टी की सीटें बढ़ीं और तीस तक पहुंच गईं लेकिन भाजपा ने जब दूसरी बार लीड बनाई तो लगातार आगे ही बनी रही.
दरअसल केजरीवाल की लगातार जीत ने उन्हें अहंकारी बना दिया था. इससे वे उन सभी वादों और बातों को भूल गए जिसके आधार पर सत्ता में आए थे. अन्ना आंदोलन के जरिये भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने का संकल्प लेने वाला व्यक्ति खुद भ्रष्टाचार में फंस गया. उनके कई मंत्री भी इसी आरोप में फंसे और खुद केजरीवाल सहित कई प्रमुख लोग जेल गए. लोगों को लगा कि यह कैसा नेता है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने की बात कहते-कहते खुद उसी की चपेट में आ गया. हालांकि सभी मामले कोर्ट में विचाराधीन हैं लेकिन इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि जहां धुआं होता है,वहां आग जरूर होती है.
राजनीति और चुनावों पर नजर रखने वाले इस बात को भी समझ रहे थे कि अरविंद केजरीवाल को अपनी हार का अनुमान हो गया था. वह चुनाव प्रचार के आखिरी दिन जिस तरह से अनाप -शनाप आरोप लगा रहे थे,वह उनकी हताशा का ही परिचायक था. कल तो वह और उनकी पार्टी के नेताओं ने यह कह कर अंतिम चाल चली कि भाजपा उनके उम्मीदवारों को 15 करोड़ रुपये तक का लालच दे रही है.
यह आरोप हास्यास्पद तो था ही आम आदमी पार्टी अपने आरोप के समर्थन में कोई प्रमाण भी नहीं दे सकी. यह सिर्फ पेशबंदी थी और एक प्रकार से इस बात की स्वीकारोक्ति भी कि केजरीवाल की पार्टी हारने जा रही है. भाजपा या कोई भी पार्टी किसी भी विधायक को इसलिए ही तो लालच देगी जब वह सरकार बनाने की स्थिति में होगी और मात्र कुछ सीटों की जरूरत होगी. अर्थात केजरीवाल इस बात को मान रहे थे कि वह हारने जा रहे हैं. विधायक खरीदने वाला आरोप ऐसा है जो हर कमजोर पार्टी लगाती है.
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