आंध्र प्रदेश के गोदावरी नदी पर बन रहे पोलावरम प्रोजेक्ट से ओडिशा के मलकानगिरी जिला के बहुत से एरिया प्रभावित होने जा रहा है. कई सारे आदिवासी भाई-बहनों के घर ढहने वाले हैं. पानी की वजह से बहुत सारे लोगों की जिंदगियां तबाह होने वाली है. लेकिन, अभी तक केन्द्र सरकार और बाकी संवैधानिक जो भी संस्थाएं हैं, उनमें इसको लेकर किसी तरह का तालमेल नहीं दिख रहा है.

इसलिए, बीजू जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष और ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के निर्देशों पर एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल दिल्ली पहुंचा और पिछले तीन दिनों में जलशक्ति मंत्री से मुलाकात की. इसके साथ ही, अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष, जनजातीय मंत्रालय और पर्यावरण मंत्रालय के सचिव के साथ प्रतिनिधमंडल ने मुलाकात की.

इसके साथ ही, केन्द्रीय जल आयोग के चेयमैन और बाकी सदस्यों के साथ भी बीजेडी प्रतिनिधिमंडल की मुलाकात हुई. लेकिन, एक चीज स्पष्ट है कि केन्द्र सरकार बिल्कुल भी नहीं सोच रही है कि ओडिशा के मलकानगिरि में जिस तरह से हमारे भाई-बहनों की जिंदगी तबाह होने जा रही है, उनके बारे में न कोई सोच और न ही कोई मंशा है.

कहीं न कहीं केन्द्र सरकार पोलावरम प्रोजेक्ट के जरिए आंध्र प्रदेश की एन. चंद्रबाबू नायडू सरकार को वो खुश करना चाहती है. विशेषकर अगर देखें तो जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट में अभी ये मामला लंबित है, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अभी तक अंतिम राय नहीं दिया है. दूसरी तरफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के जो वर्क ऑर्डर है, उसको भी साल दर साल रिव्यू करके बैकएंड से ये कोशिश हो रही है कि इसे आगे बढ़ाया जाए. ये किसी भी सूरत में उचित नहीं है.

हम ये चाहते हैं कि स्ष्टता आए कि आखिर ओडिशा के कितने लोग इससे प्रभावित होंगे. साथ ही, इस प्रोजेक्ट के द्वारा कैसे उन लोगों को और किस तरह से बचाया जा सकता है.  यानी, एक राष्ट्रीय परियोजना होने के बावजूद ये स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि जो ओडिशा प्रभावित होने जा रहा है, उन लोगों की जिंदगियों पर क्या कुछ प्रभाव पड़ेगा.

ऐसे में लगता है कि केन्द्र की सरकार ओडिशा के इस मामले पर आंख मूंद ली है और आंध्र प्रदेश को ही समर्थन कर रही है. दरअसल, अभी इन्होंने पलावरम परियोजना का डिजाइन बदल दिया है. पहले 36 लाख क्यूसेक पानी के जल प्रवाह की योजना थी. लेकिन उसे बढ़ाकर अब 50 लाख कर दिया गया है. लेकिन, इसके लिए न कोई मंजूरी हुई न ही कोई इसको लेकर बातचीत हुई और न ही कोई कॉन्ट्रैक्ट हुआ. गोदावरी ट्राइब्यूनल का जो ऑर्डर था, उसी के माध्यम से ये किया जा रहा है. यानी पूरी तरह से ये गैरकानूनी है.

दूसरी बात ये कि इस प्रोजेक्ट के होने की वजह से क्या होगा कि जो दो मलकानगिरि में दो ब्लॉक्स हैं, वहां पर बड़ी तादाद में तबाही होने जा रही है. और इसकी स्पष्टता वो जो प्रोजेक्ट कर रहे हैं, वही दे सकते हैं. विडंबना की बात ये है कि जो प्रोजेक्ट कर रहे हैं, वो चाहे सेंट्रल वाटर कमीशन के माध्यम से हो रहा हो या फिर आंध्र प्रदेश के माध्यम से...कोई स्टडीज नहीं हो रही है कि इतने बड़े प्रोजेक्ट की वजह से इसका राज्य पर किस तरह का प्रभाव पड़ेगा.

अगर मैं बोलूं कि एक लाख लोग या दो लाख लोग... तो ये लोग कहेंगे कि आपको कैसे पता. लेकिन हकीकत ये है कि इससे बहुत सारा नुकसान होने जा रहा है. साथ ही, लाखों की संख्या में जो लोगों  रहते हैं, उनकी पूरी जिंदगी ही खत्म हो जाएगी. इसलिए ये बड़ी चिंता की बात है कि प्रोजेक्ट एक-दो साल में खत्म होने जा रहा है, लेकिन कितने लोग प्रभावित होंगे, इसके बारे में केन्द्र सरकार पूरी तरह से मौन है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]