बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की इफ़्तार पार्टी में जाना महज एक शिष्टाचार संयोग था या फिर इसे किसी नए सियासी गठजोड़ का संकेत माना जाये? हालांकि खुद नीतीश ने सफ़ाई दी है कि इसके राजनीतिक मायने नहीं निकाले जाएं, लेकिन पूरे पांच साल बाद लालू-राबड़ी के घर पहुंचकर नीतीश ने दिल्ली में बैठे बीजेपी नेतृत्व पर दबाव बनाने की कोशिश तो की ही है. दरअसल, बीजेपी के सहयोग से बनी नीतीश सरकार में सबकुछ ठीक नहीं है और बीजेपी विधायकों ने खुलकर ये आवाज़ उठाना शुरु कर दी है कि अब मुख्यमंत्री का पद पार्टी को मिलना चाहिये. कहते हैं कि नीतीश कुमार सियासी लहरों की चाल समझने में माहिर हैं, लिहाज़ा उन्होंने तूफ़ान उठने से पहले ही अपनी कुर्सी सुरक्षित रखने व सत्ता में बने रहने का विकल्प खोज लिया है और तेजस्वी की इफ्तार पार्टी में शामिल होकर उसका संदेश भी दे दिया है.


शायद यही वजह है कि उनकी सफाई पर कोई यकीन करने को तैयार नहीं है और पटना से लेकर दिल्ली के सियासी गलियारों में यही कयास लगाए जा रहे हैं कि बिहार की राजनीति में जल्द ही बड़ा उलटफेर हो सकता है. लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता हैं और उन्हें शालीन व संजीदा राजनीति करने वाले नेता के तौर पर देखा जाता है. इसलिये उन्होंने तो इस मुलाकात के दौरान नीतीश से हुई चर्चा को लेकर कोई ऐसा बयान नहीं दिया, जिससे सियासी अटकलों का बाजार गर्म हो जाये, लेकिन लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने एक बड़ा बयान देकर सियासी तूफ़ान ला दिया है. उन्होंने साफ कहा है कि "सरकार बनाएंगे, खेल होगा, हमारी नीतीश जी से सीक्रेट बात हुई है." तेज प्रताप ने यह भी कहा कि "हमने नीतीश कुमार के लिए पहले नो एंट्री का बोर्ड लगा रखा था, लेकिन अब उन्हें हमने एंट्री दे दी है. अब वह आए हैं तो सरकार भी बनेगी."


अब जरा नीतीश के उस बयान पर भी गौर करते हैं, जो उन्होंने इफ़्तार पार्टी में शामिल होने को लेकर दिया है. उन्होंने कहा कि "इफ्तार पार्टी का आयोजन सभी राजनीतिक दलों की तरफ से किया जाता है. सभी राजनीतिक दल के लोग एक दूसरे की इफ्तार पार्टी में जाते हैं. मुझे भी बुलाया गया था तो जाने का फैसला किया, इसका राजनीति से कोई संबंध नहीं है." नीतीश और तेज प्रताप का बयान एक-दूसरे के बिल्कुल उलट है, लेकिन राजनीतिक लिहाज से देखें तो दोनों ही अपनी जगह पर सही भी हैं. वह इसलिये कि नीतीश राजनीति के एक ऐसे मंझे हुए खिलाड़ी हैं, जो जानते हैं कि कब, कहां, कौन-सा पत्ता खोलना है. जबकि तेज प्रताप अभी सियासत की सीढ़ियां चढ़ना ही सीख रहे हैं और ये नहीं समझते कि किस बात को जुबान पर नहीं लाना है, लिहाज़ा उन्होंने मीडिया के आगे ये राज भी उगल दिया.


वैसे नीतीश कुमार नवंबर 2020 में चौथी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं, लेकिन महज़ डेढ़ साल में ही बीजेपी नेताओं से उनकी खटपट शुरू हो गई है. उसकी बड़ी वजह ये है कि उस चुनाव में बीजेपी को 74 और जेडीयू को 43 सीटें मिली थीं. कम सीटें मिलने के बावजूद बीजेपी ने अपना बड़प्पन दिखाते हुए नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री का पद दिया.


राजनीति में पद की भूख को शांत कर पाना, हर किसी के बस की बात नहीं होती. पिछले दिनों ही बिहार बीजेपी के नेताओं ने नीतीश को दिल्ली भेजने और बिहार के लिए मुख्यमंत्री पद पार्टी को देने की बात कही थी. बीजेपी के कुछ विधायकों ने खुलकर ये मांग की है कि नीतीश कुमार को सीएम का पद छोड़ देना चाहिए और मुख्यमंत्री अब बीजेपी का होना चाहिए. हालांकि सियासी गलियारों में अटकलें ये भी लगाई जा रही हैं कि नीतीश कुमार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जा सकता है. सवाल ये है कि क्या नीतीश अपने कार्यकाल के शेष बचे साढ़े तीन साल तक सीएम न रहने का मोह छोड़ पाएंगे?


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