इजराइल की हमास के साथ काफी दिनों से चल रही गाज़ा में युद्ध की तपिश अब अमेरिका की यूनिवर्सिटी तक पहुंच गयी है. अमेरिका के कई बड़े विश्वविद्यालयों में छात्रों ने इजराइल और फिलिस्तीन के मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन किया. विश्वविद्यालयों की फंडिंग इजराइल से सम्बन्ध रखने वाली कंपनियों को ना मिले, जैसी मांगें करने लगे. अमेरिका की इस युद्ध में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भूमिका है. अमेरिका की इजराइल के साथ वैश्विक मंच पर साझेदारी है. करीब एक-दो महीने से अमेरिका के बड़े विश्वविद्यालयों जैसे कोलंबिया यूनिवर्सिटी , हार्वर्ड यूनिवर्सिटी , यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेंसिल्वेनिया जैसे संस्थानों में ये प्रदर्शन  देखने को मिलें हैं.  एक छात्र संगठन की भूमिका भी उल्लेखनीय है, इस छात्र संगठन के अनुसार इजराइल गाज़ा में नरसंहार कर रहा है.


अतिवादी वामपंथ और अमेरिका


विश्वविद्यालय में प्रदर्शन कर रहे इस संगठन से अल्ट्रा लेफ्ट विचारधारा के लोग जुड़े हैं. अमेरिका एक लोकतांत्रिक देश है ऐसे में आप वहां शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं. कुछ महीनों पहले हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी  में भी काफी हंगामा हुआ था. वहां यहूदी बच्चों के साथ पक्षपात का आरोप लगा था. फिर कहा गया कि इजरायली बच्चों के साथ इंसाफ नहीं हुआ. साथ ही उन्हें रोका गया. उन बच्चों को अमेरिकी कांग्रेस में बुलाया गया और आखिरकार हार्वर्ड की प्रेसिडेंट क्लाउडिया गे ने भी इस्तीफा दिया. एक बार फिर अमेरिकी विश्वविद्यालयों में उबाल है और यह इस बार फिलीस्तीन के पक्ष में और इजरायली हमलों के विरोध में है. पिछले एक सप्ताह में यह प्रदर्शन उग्र रूप लेता चला गया, जैसे न्यूयॉर्क स्थित कोलंबिया यूनिवर्सिटी में काफी दिनों से प्रदर्शन चल रहा था, इस पर कोलंबिया यूनिवर्सिटी की प्रेसिडेंट मिनूचे शफीक को अमेरिकी कांग्रेस में बुलाया गया और पूछा गया की ''इन प्रदर्शनों पर आप क्यों कोई कार्यवाही नहीं कर रहीं'', इस पर शफीक ने कहा, ''मैं शान्ति से हो रहे प्रदर्शन पर कोई कार्यवाही नहीं कर सकती हूं''.  कई मीडिया संस्थानों के अनुसार, अमेरिका के अमीरों में  गिने जाने वाले  सोरोस ब्रदर्स के साथ कई लोगों का नाम इन प्रदर्शनों के पीछे हो सकता है . कोलंबिया यूनिवर्सिटी में ही इस बार प्रदर्शनकारी डेरा डालने लगे. साथ में हैमिल्टन हाउस में घुस कर इन प्रदर्शनकारियों ने उसको हाईजैक कर लिया. जब लोग बड़ी संख्या में जुटते हैं तो चीजें ऊपर नीचे होतीं हैं ऐसा ही कोलंबिया यूनिवर्सिटी में हुआ यूनिवर्सिटी में बाहर के लोग घुस कर भीड़ में शामिल हो गए. 


आतंकवादी संगठन के लोग और भीड़  


मीडिया रिपोर्ट्स और न्यूयॉर्क के मेयर के अनुसार, कोलंबिया यूनिवर्सिटी में बाहर से घुसे लोगों में 'वैदर अंडरग्राउंड' नाम के आतंकवादी संगठन के लोग भी हैं, इस संगठन के ऊपर बम ब्लास्ट करने तक के केस दर्ज़ हैं. न्यूयॉर्क के मेयर के अनुसार यूनिवर्सिटी में ऐसे लोग घुस गए हैं जिनका काम ही प्रदर्शन के साथ उसे दूसरी दिशा दिखाना है. साथ ही यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया , नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ़ विस्कॉन्सिन जैसे संस्थानों में प्रदर्शनों ने उग्र रूप ले लिया.  अमेरिका के पडोसी देश कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी में भी प्रदर्शनकारी डेरा डालने लगे और इसमें बाहर की यूनिवर्सिटी के छात्र भी शामिल होने लगे. इस सब के बाद खतरा था कि ये शान्ति प्रदर्शन कहीं उग्र रूप में ना बदल जाएं, कुछ यूनिवर्सिटी में प्रदर्शन उग्र भी हुए. कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी में यूनिवर्सिटी प्रशासन को पुलिस बुलानी पड़ी. सवाल यह है कि अमेरिका जो डेमोक्रेसी का अलंबरदार होने का दावा करता है, वहां पर आखिर ऐसी नौबत क्यों आयी? इसका जवाब तलाशने की जरूरत है.  


इजराइल के खिलाफ या अमेरिका के?


हर युद्ध में आम लोगों की जानें जाती हैं. गाजा में  यही हो रहा है. ऐसे में लोगों में ग़ज़ा के लिए सहानुभूति है, और होनी भी चाहिए, लेकिन प्रदर्शनकारी इजराइल के खिलाफ तो प्रदर्शन कर ही रहें हैं, उसके साथ ही अमेरिका के झंडे के साथ भी अस्वीकार्य चीजें कर रहे हैं जो कि अमेरिकी बर्दास्त नहीं करेंगे. आप अमेरिकी जमीन पर अमेरिकी झंडे का अपमान करेंगे, तो वह स्वीकार्य तो नहीं ही होगा. उसी तरह आप फिलीस्तीन का साथ देते-देते अगर हमास के कायराना आतंकि हमले को कवर फायर देने लगेंगे तो वह भी गलत होगा. ये प्रदर्शन 2 महीनों से चल रहे हैं. अगर नवंबर में चुनाव ना होते तो यह प्रदर्शन पहले ही ख़त्म हो जाता. अमेरिका की सत्ताधारी डेमोक्रेटिक पार्टी नहीं चाहती कि उसके वोटर उस से खफा हों. साथ ही बाइडेन के खिलाफ अप्रतिबद्ध वोट पड़े थे. इस कारण ह्वाइट हाउस का इन प्रदर्शनों पर कोई ख़ास बयान भी नहीं आया था. ह्वाइट हाउस को लगा था के यह प्रदर्शन शांतिपूर्वक होंगे जो अंत में नहीं रहे. 


यूनिवर्सिटी में पुलिस, अमेरिकी उदारवाद पर धब्बा?


छोटे हादसों को रोकना ही समझदारी है न कि बड़े हादसों से निपटना. अमेरिका में जो हुआ उसकी शुरुआत शन्ति प्रदर्शनों से हुई. लेकिन आखिर में मिशिगन विश्वविद्यालय के प्रदर्शनों में ''डेथ टू अमेरिका'', ''यहूदियों को जीने का अधिकार नहीं''  जैसे नारे लगने लगे.  आपकी स्वतंत्रता जब तक है जब तक आप दूसरे को कष्ट नहीं देते साथ ही जब तक आप शांति पूर्वक प्रदर्शन करते हैं. इस प्रदर्शन के खिलाफ और इजराइल को समर्थन देने भी लोग आने लगे. ऐसे में प्रदर्शन में हस्तक्षेप करना ही समझदारी थी.  जिससे एक बड़ा हादसा टल गया. इस तरह का प्रदर्शन लोकतांत्रित देश में, लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं हैं. अमेरिकी सरकार को ग़ज़ा में उत्पन्न मानवीय संकट को सुलझाने और निर्दोष व्यक्तियों के लिए कदम उठाने चाहिए, जिस से निर्दोष लोगों को जान ना गंवानी पड़े.


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