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'भारत जोड़ो यात्रा' पर निकले राहुल गांधी राजस्थान में टूटती कांग्रेस को बचा पाएंगे?

अपनी भारत जोड़ो यात्रा पर निकले राहुल गांधी अब उस राजस्थान में पहुंच चुके हैं जहां अपने घर में ही दो नेताओं के बीच ऐसी तीखी जुबानी जंग चल रही है जिसने पिछले सवा साल से कांग्रेस का ब्लड प्रेशर हाई कर रखा है. ये लड़ाई भी ऐसी है जिसे सुलटाने का रास्ता न तो सोनिया-प्रियंका को समझ आया और न ही राहुल गांधी ही अब तक इसे ख़त्म करवाने का कोई माकूल सियासी रास्ता तलाश पाये हैं.

लिहाज़ा, ये मान लेना कि जिस घरेलू झगड़े को सुलझाने में गांधी परिवार ही अब तक बेबस दिखाई दे रहा है उसे पार्टी के नये अध्यक्ष बने मल्लिकार्जुन खरगे अचानक सुलझा लेंगे ये सबसे बड़ी भूल होगी. बीते रविवार को अपनी यात्रा के जरिये झालावाड़ से राजस्थान में प्रवेश करने वाले और तकरीबन 15 दिन तक राज्य का अधिकांश हिस्सा नापने वाले राहुल गांधी से वहां के कांग्रेसियों को इसीलिये उम्मीद बंधी है कि वे इस झगड़े को हमेशा के लिए खत्म करके मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट में सुलह कराकर ही राजस्थान से बाहर निकलेंगे.

सवाल ये है कि साल 2018 के चुनाव के बाद से ही इन दोनों नेताओं के बीच एक-दूसरे को नीचा दिखाने और अपने अहंकार को न झुकने देने की जो तलवारें खींची हुई हैं, क्या राहुल गांधी उसे इनकी म्यानों में वापस ले जाने में इतनी आसानी से कामयाब हो जाएंगे? अगर वे कामयाब हो गए तो ये कांग्रेस के अस्तित्व को बचाने की एक बड़ी उपलब्धि होगी और अगर ऐसा नहीं हुआ तो इस सियासी सच को मानना ही पड़ेगा कि पंजाब की तरह ही वो राजस्थान का किला भी अपने हाथ से खो बैठेगी. इसलिये कि अगले साल के अंत में वहां विधानसभा चुनाव हैं और गहलोत-पायलट गुट के बीच कुर्सी से हटने और उसे पाने के लिए छिड़ी ये लड़ाई अगर अब भी सुलह में नहीं बदली तो फिर शायद कभी बदल भी नहीं पायेगी. और तब, कांग्रेस के लिए पूरे देश में इसका सबसे बड़ा नकारात्मक संदेश यही जायेगा कि जो पार्टी "भारत जोड़ो" यात्रा पर निकली थी वह अपना घर तो जोड़ नहीं पाई सो उस पर क्या खाक यकीन किया जाये.

लिहाज़ा, राजस्थान में अपनी नाक ऊंची रखने की इस लड़ाई को गहराई से समझने वाले सियासी जानकार यही मानते हैं कि राहुल गांधी के लिए यही सबसे सुनहरा मौका है कि वे गहलोत और पायलट को आमने-सामने बैठाकर एक-दूसरे के ख़िलाफ़ दोनों की शिकायतें सुनें और फिर उनकी खुंदक को खत्म करने ले लिये कोई ऐसा फार्मूला भी निकालें जिस पर दोनों राजी भी हो जाएं और अगला चुनाव एकजुट होकर लड़ने की शपथ भी लें.

हालांकि ये इतना आसान भी नहीं है क्योंकि सत्ता की राजनीति में आने वाला कोई विरला ही ऐसा शख्स होता है जो कुर्सी पाने का मोह त्याग दे या फिर अपनी कुर्सी पर किसी और को बैठाने की दरियादिली दिखाने व उसे पचाने की हिम्मत जुटा पाये. सियासत की हर तपिश को झेलते हुए तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे अशोक गहलोत के बारे में जानकार बताते हैं कि वे इस लड़ाई में हार मानने को तैयार नहीं हैं. बेशक वे साल भर पहले सीएम की कुर्सी से हटने को राजी हैं लेकिन सचिन पायलट को वे किसी भी सूरत में उस कुर्सी पर बैठे देखना नहीं चाहते हैं. 

गहलोत इस जिद पर अड़े हुए हैं कि अगर मैं नहीं तो मेरा सुझाया कोई विधायक ही सीएम बनने का हकदार होगा लेकिन पायलट तो किसी भी सूरत में नहीं होंगे. गहलोत अपनी सियासी पारी खेल चुके हैं लेकिन फिर भी वे चौथी बार सीएम बनने की अपनी दावेदारी से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं और, अगर हटेंगे भी तो अपनी शर्तें मनवाने के साथ. इसलिये उन्हें सम्मानजनक तरीके से हटाने की कवायद में पार्टी आलाकमान भी नाकामयाब हो गया और दो दिन के उस ड्रामे से देश भर में कांग्रेस की जो फजीहत हुई सो अलग.

दरअसल, गहलोत की सबसे बड़ी ताकत उनके पक्ष में तकरीबन सौ विधायकों का होना है. उसके दम पर ही वे पार्टी आलाकमान को एक तरह से ब्लैकमेल कर रहे हैं. हालांकि राजनीति में ये तौर-तरीका पानी के बुलबुले की तरह ही होता है लेकिन गहलोत बखूबी ये जानते हैं कि वे सियासी उम्र की जिस ढलान पर हैं, वहां उनके पास खोने के लिये कुछ नहीं है बल्कि वे उस रणनीति पर आगे चल रहे हैं कि अगले एक साल के लिए भले ही सीएम मैं न रहूं लेकिन सत्ता का रिमोट कंट्रोल मेरे ही हाथों में रहे. चूंकि सचिन पायलट पर उनका रिमोट पूरी तरह से डिस्चार्ज ही साबित होगा इसलिये वे एक ऊर्जावान व बेदाग छवि वाले युवा नेता की तरक्की के रास्ते में सबसे बड़ा स्पीड ब्रेकर बने हुए हैं.

हालांकि प्रदेश के दो बड़े नेताओं की इस रस्साकशी के बीच एक अच्छा दृश्य देखने को मिला है. राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो' यात्रा ने रविवार शाम को मध्यप्रदेश की बॉर्डर खत्म करते हुए झालावाड़ जिले से राजस्थान में प्रवेश किया है. उस मौके पर सीएम अशोक गहलोत, प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट सहित सरकार के कई मंत्री और बड़े नेताओं ने उनकी अगवानी करते हुए ये संदेश दिया कि यहां सबकुछ ठीक है.

वहां हुई जनसभा में राहुल गांधी का आदिवासियों के चर्चित सहरिया नृत्य के साथ स्वागत किया गया. मंच पर हो रहे उस नृत्य को देखकर राहुल गांधी भी अशोक गहलोत, कमलनाथ और सचिन पायलट के साथ डांस करने लगे. इस दौरान सचिन पायलट और अशोक गहलोत ने एक-दूसरे का हाथ पकड़कर साथ में नृत्य करते हुए बड़ा सियासी संदेश दिया है. एक ही पार्टी के दो धुर विरोधी नेताओं का वो मिलन महज़ दिखावा था या फिर सचमुच किसी सुलह का आगाज़ था, ये तो अब राहुल गांधी को ही तय करना होगा.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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