किसी भी देश की राजनीति में सत्ता में बैठी सरकार को बदनाम करने या उसकी नीयत पर शक करने के लिए विपक्ष के पास सबसे बड़ा हथियार होता है कि वो किस संगीन आरोप से उसे घेर कर सकती है. भारत में तो पीएम मोदी को अपने भाषणों से ही विपक्ष को धो डालने की कला में महारत हासिल है. लेकिन हमारे सबसे पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में जो खलबली मची हुई है वो भी भारत के कूटनीतिक रिश्तों को लेकर बेहद अहम है. वहां भी खालिदा ज़िया की अगुवाई वाली विपक्षी पार्टी ने शेख हसीना सरकार पर जो आरोप लगाए हैं वे अब हवा में उड़ते हुए दिख रहे हैं.


याद रखना चाहिए कि पूर्वी पाकिस्तान से अलग करके बांग्लादेश को एक आज़ाद मुल्क बनाने में भारत ने ही सबसे अहम भूमिका निभाई थी. अब उसी शेख हसीना की सरकार के खिलाफ पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की अगुवाई वाली मुख्य विपक्षी पार्टी ने दुष्प्रचार अभियान छेड़ दिया है. थोड़ा गहराई से गौर करेंगे तो यही लगेगा कि उन्हें भी भारत के विपक्ष से ही ये नसीहत मिली है. लेकिन उस मुल्क के अवाम के बहुत बड़े तबके ने विपक्ष के आरोप पर न तो यकीन किया और न ही उसे  तवज्जो दी है.


दरअसल, कोरोना काल के दौरान वहां की मुख्य विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी BNP समेत तमाम विपक्ष ने ये आरोप लगाया था कि शेख हसीना सरकार ने देश को कंगाल बना दिया है. इसलिए कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष IMF ने उसे कर्ज़ देने से मना कर दिया है जिसके चलते कोविड से न जाने कितने लोग मर जाएंगे और वैक्सीन न मिलने से पूरा हैल्थ सिस्टम ही चौपट हो जायेगा.


लेकिन ऐसा नही हुआ और विपक्ष के तमाम दुष्प्रचार के बावजूद शेख हसीना सरकार ने कोविड-19 के दौरान वो सब कर दिखाया जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के लक्ष्य के मुताबिक था. उन्होंने मुल्क की 70 फीसदी से भी ज्यादा आबादी को पूरी तरह से वैक्सीन की दोनों खुराक दे दी. उसका नतीजा ये हुआ कि तमाम देशों की माली हालत सुधारने वाले दुनिया के इस सबसे बड़े संगठन यानी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अब बांग्लादेश को दिये गए 4.7 बिलियन डॉलर के कर्ज यानी सहायता ऋण पैकेज को खत्म कर दिया है. हालांकि एक छोटे मुल्क के लिए ये बहुत बड़ी धनराशि है जिसका अगर तरीके से इस्तेमाल हुआ हो तो पूरे देश का कायाकल्प हो सकता है. इसी कर्ज को लेकर विपक्ष उन्हें कोरोना काल से ही घेर रहा था कि या तो ये मिलेगा ही नहीं और मिल गया तो मुल्क इसे चुकाते-चुकाते कंगाल हो जायेगा.


बांग्लादेश के बहुत सारे पत्रकार और बुद्धिजीवी मानते हैं कि सियासी मतभेद होना आम बात है लेकिन सरकार के खिलाफ ऐसा दुष्प्रचार करने से मुख्य विपक्ष को कुछ हासिल नहीं होने वाला है. बल्कि वे अवाम को गुमराह ही कर रहे हैं. मुल्क के मशहूर पत्रकार और अंतरराष्ट्रीय मसलों पर शोध करने वाले सैयद बदरुल अहसन कहते हैं कि विपक्षी पार्टी के किसी भी सरकार के साथ बहुत सारे मसलों पर मतभेद हो सकते हैं लेकिन जब वो भविष्यवक्ता बनने लगे तो ये स्थिति बेहद अफ़सोसजनक हो जाती है. विपक्षी दल अगर ऐसी फिजूल की बातें करेंगे जिससे आम जनता का कोई भला नहीं होने वाला है तो इसका भला क्या फायदा होगा. उनके मुताबिक कयामत के दिन पर यकीन रखने वाले विपक्ष का मकसद सिर्फ सत्ता हासिल करना ही नहीं होना चाहिए. उसे ये भी देखना होगा कि सरकार ने क्या अच्छे काम किये हैं और उसके अनुसार ही उसे अपनी आगे की सियासी रणनीति बनाने की जरूरत है.


बहुत सारे लोगों को यकीन नहीं होगा लेकिन दोनों देशों की राजनीति पर नजर रखने वाले विश्लेषक मानते हैं कि शेख हसीना में भी हमारे नरेंद्र मोदी की तरह का ही जज़्बा है और कुछेक मौकों पर उन्होंने साबित भी करके दिखाया है. इसकी बड़ी मिसाल ये है कि भ्रष्टाचार के कथित आरोप के चलते जब विश्व बैंक ने पद्मा ब्रिज बनाने के लिए कोई आर्थिक मदद नहीं दी तो शेख हसीना ने अपने संसाधनों के दम पर पिछले साल जून में उसे बनाकर दिखा दिया. तब भी विपक्ष ने भ्रष्टाचार के तमाम निराधार आरोप लगाते हुए उसे शेख हसीना का "मायावी जाल" बताया था लेकिन वहां की जनता ने उस पर भरोसा नहीं किया था.


जिस तरह भारत में पीएम मोदी अक्सर विपक्ष के निशाने पर रहते हैं, ठीक वही नजारा बांग्लादेश में भी देखने को मिल रहा है. लेकिन वे भी मोदी की तरह ही विपक्ष को दिन में ही तारे दिखाने में माहिर हैं. शायद इसलिए कि वहां की मुख्य विपक्षी पार्टी के पास भी सरकार को कटघरे में खड़ा करने के लिए कोई पुख्ता सबूत नहीं होते. सारे आरोप हवा-हवाई वाले ही होते हैं जिसे भारत के लोगों की तरह बांग्लादेश का अवाम भी हवा में उड़ाते हुए सुकून की नींद लेने में ही अपनी भलाई समझता है.


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