पूर्व सांसद और माफिया डॉन से राजनेता बने अतीक अहमद पर उमेश पाल किडनैपिंग केस में प्रयागराज एमपी-एमएलए कोर्ट की तरफ से ये फैसला तो आ गया, और उसे दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा भी सुनाई गई, लेकिन यह देर से आया हुआ फैसला है. दरअसल, अतीक अहमद पर करीब 100 से अधिक मुकदमे दर्ज हैं. उसने पहला अपराध 1989 में किया था जब वह 17 साल का था और वो भी मर्डर करने का क्रइम था. उमेश पाल का मामला साल 2006 का है और इसमें भी 17 साल लग गए. तो यकीनन इसमें देरी हुई है इसमें कोई शक नहीं है. अब देखना यह है कि अतीक अहमद पर जो और भी अन्य मामले चल रहे हैं, उनमें कितनी तेजी से सुनवाई होती है और उनका निपटारा किया जाता है.


इसके साथ ही, देखने की बात यह होगी कि क्या वह जेल के अंदर रहकर कोई अपराध करने में सक्षम होगा या नहीं. क्योंकि देखिए, जब उमेश पाल की हत्या हुई थी तो अतीक अहमद साबरमती जेल में बंद था और उसका भाई अशरफ बरेली की जेल में बंद था. इन दोनों लोगों ने जेल में रहते हुए भी उमेश पाल को खत्म करने की साजिश रची और उसे अंजाम देने में सफल भी हो गए. मुझे यही लगता है कि यह देखने की बात है कि क्या जेलें अपने यहां बंद किसी कैदी के अपराध पर लगाम लगा सकती है या नहीं. यह एक बड़ा महत्वपूर्ण सवाल है?


देर से आया दुरुस्त फैसला


कहीं ना कहीं इस तरह के जो बाहुबली, माफिया, सरगना हैं उन पर एक दबाव तो बनता ही है कि भले ही देर है लेकिन अंधेर नहीं. उन्हें भी सजा भी हो सकती है. दूसरा असर यह होगा कि जो राजनीतिक संगठन ऐसे तत्वों को पालने-पोसने का काम करते हैं, उन पर भी दबाव बढ़ता है और उन्हें भी लोग आईना दिखाते हैं. अतीक अहमद इतना कुख्यात माफिया नहीं बना होता अगर उसे समाजवादी पार्टी का संरक्षण नहीं मिला होता. आज अतीक अहमद को जिस मामले में सजा हुई है, वह उमेश पाल के अपहरण का मामला है और उसका अपहरण हुआ था 2006 में. उस वक्त यूपी में सपा की सरकार थी और मुलायम सिंह मुख्यमंत्री हुआ करते थे अतीक अहमद खुद समाजवादी पार्टी का सांसद था.



उसको सत्ता का इतना जबरदस्त संरक्षण मिला हुआ था कि उमेश पाल को अपने अपहरण, मारपीट, धमकी और उगाही के खिलाफ FIR दर्ज कराने की भी हिम्मत नहीं पड़ी. उन्होंने ये एफआईआर तब दर्ज कराई जब यूपी में सत्ता बदल गई. उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की जगह मायावती शासन में आ गईं, तब उसने एफआईआर दर्ज कराने की हिम्मत जुटाई. इससे स्पष्ट तौर पर समझा जा सकता है कि सत्ता का अतीक अहमद को कितना प्रबल संरक्षण और समर्थन प्राप्त था और चूंकि वो खुद एक सांसद था सपा के टिकट पर तो अगर किसी अपराधी को सत्ता का संरक्षण ना मिले तो वह इतना पनप भी नहीं सकता है. इतना खौफ का राज हो ही नहीं सकता है.


100 से ज्यादा अतीक अहमद पर केस


अतीक अहमद पर जो तमाम मामले थे हत्या, अपहरण, फिरौती, जमीनों पर अवैध कब्जा करना, रंगदारी, मारपीट इन सब मामलों का अदालतों में इसलिए निपटारा नहीं हो पाया क्योंकि वह अपने विरोधियों को, गवाहों को मारता-पीटता और धमकाता था और कई मामलों में उन्हें खत्म करा देता था. उसका खौफ इतना ज्यादा था कि एक तरह से सिस्टम जो है वह सुस्त पड़ गया था और सिस्टम भी उससे खौफ खाता था. उसके खौफ का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि जब 2012 में वह जेल में बंद था और चुनाव लड़ने के लिए उसने इलाहाबाद कोर्ट में जमानत याचिका लगाई तो एक और दो नहीं बल्कि पूरे के पूरे 10 जजों ने उसकी जमानत याचिका पर सुनवाई करने से पीछे हट गए. यह उसके खौफ का एक उदाहरण है. इसके साथ-साथ अतीक अहमद जैसे माफिया तत्वों को जो पूरा सिस्टम है या तो उसको संरक्षण देने लगता है तब वह पनपते हैं या फिर उससे सब लोग खौफ खाने लगते हैं तब वह बेखौफ हो जाते हैं.


निश्चित रूप से इसमें कोई शक नहीं है कि योगी सरकार ने अतीक अहमद जैसे माफिया तत्वो के खिलाफ अपनी निगाह टेढ़ी कर ली है और मिजाज टेढ़ी करने से क्या परिणाम सामने आते हैं उसका उदाहरण आप सबके सामने है जो अतीक अहमद को आज सजा सुनाई गई है.


यही अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जब खुद की सरकारें हुआ करती थीं तो उन सरकारों का का संरक्षण पाते थे और वो सरकारें और प्रशासन उनके खिलाफ कार्रवाई करने में डरता था, कांपता था. एक बार तो कहा जाता है कि जब प्रयागराज इलाहाबाद हुआ करता था वहां की पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया गया था और संभवत उसके एनकाउंटर की तैयारी कर रही थी लेकिन उस समय उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी और केंद्र में भी और किसी का फोन आ गया था तो वह न केवल बच गया है बल्कि उसे छोड़ दिया गया. तो अतीक अहमद को   कई सरकारों का संरक्षण मिला है. उसे कांग्रेस के सरकार में भी संरक्षण मिला और वह जेल से छूटा और पुलिस की गिरफ्त से भी बाहर आया. सपा के सरकार में तो वह एक तरीके से सरकारी मेहमान बना हुआ था तब वह बहुत तेजी से फला-फूला लेकिन योगी सरकार ने अपनी नजर टेढ़ी कर ली तो वह काबू में आ गया. उसके मामले की सुनवाई भी तेजी से हुई और अंततः उसे आज सजा भी सुना दी गई. लेकिन यह सजा पर्याप्त नहीं है. पर्याप्त इसलिए नहीं है क्योंकि उसके खिलाफ कोर्ट में जो और भी मामले चल रहे हैं, उसमें भी प्राथमिकता के आधार पर तेजी से सुनवाई होनी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जेल में रहते हुए अतीक अहमद अपराध करने में सक्षम ना होने पाए. इसकी व्यवस्था करनी होगी क्योंकि इन माफिया तत्वों ने जेलों जेलों के औचित्य को खत्म कर दिया है.


40 साल के आपराधिक जीवन में पहला फैसला


अतीक अहमद और उसके साथियों के आतंक का मैं आपको एक और उदाहरण देता हूं. अतीक और उसके गुर्गों पर बसपा विधायक राजू पाल की हत्या करने का आरोप है. यह तब हुआ था जब राजू पाल ने बतौर बसपा उम्मीदवार अतीक के भाई अशरफ को चुनाव में पराजित कर दिया था तो राजू पाल पर लगातार तीन हमले हुए थे. पहला हमला अक्टूबर में हुआ जिसमें वह बच गया था. दूसरा हमला नवंबर-दिसंबर में हुआ था और तीसरा हमला तब हुआ था जब राजू पाल अस्पताल से लौट रहा था. उसी दौरान उसकी गाड़ी को घेर कर के बम और बंदूकों से हमला करके उसे बुरी तरह से छलनी कर दिया था. उसके समर्थक दूसरी गाड़ी से आ रहे थे जिन्होंने राजू पाल को टेम्पो में लेकर अस्पताल की ओर भागे लेकिन अतीत और उसके गुर्गों को लगा कि वह कहीं जिंदा तो नहीं रह गया तो उन सभी ने करीब 5 से 6 किलोमीटर जा कर के ऑटो को घेर लिया और फिर से उस पर गोलियां बरसाई ताकि यह सुनिश्चित हो जाए कि वह मर जाए और आखिरकार जब वह अस्पताल पहुंचता है तब तक वह मर चुका होता है.


इस तरह की जितनी भी वारदात अतीक अहमद करता था तो उसके खौफ के चलते ना तो कोई गवाही देने को तैयार होता था, ना ही कोई चश्मदीद होता था तो ऐसे में जो अदालतें थीं वो अक्षम थीं क्योंकि किसी भी मामले में अगर कोई गवाह नहीं होगा, कोई चश्मदीद नहीं होगा तो वह भी कुछ नहीं कर सकते हैं. आज से पहले तक अतीक के मामले में यही चला होता आ रहा था और इसलिए 100 से ज्यादा मुकदमे जिस पर हैं, पहली बार तकरीबन 40 साल के आपराधिक जीवन में उसे सजा सुनाई गई है.


[ये आर्टिकल पूरी तरह से निजी विचारों पर आधारित है]