हम सबको अपनी सेनाओं पर सबसे ज्यादा गर्व है, इसलिये कि वे राजनीति की तरह झूठे वादों का झुनझुना हमारे हाथ में नहीं थमातीं, बल्कि पूरे समर्पण और अपनी जिंदगी दांव पर लगाते हुए वे सैनिक हमारी सरहदों की रक्षा करते हैं, ताकि हम सब चैन की नींद ले सकें. किसी भी देश के लोगों के लिए ये सबसे बड़ा गौरव होता है कि जिसे वो जानते-पहचानते तक नहीं, वही उनकी रक्षा में हर वक़्त मुस्तैद रहता है. शायद इसीलिए विदेशों में किसी नेता से ज्यादा सम्मान एक सैनिक को मिलता है क्योंकि वह ये मांगता नहीं,बल्कि लोगों ने ही उसे इसका हकदार बनाया हुआ है.


लेकिन हमारे देश में इधर पिछले कुछ सालों में ये देखने में आ रहा है कि सेना  पर भी कोई ऐसा दबाव पड़ने लगा है कि न चाहते हुए भी उन्हें दुश्मनों के ख़िलाफ़ अपनी रणनीति का खुलासा सार्वजनिक करने पर मजबूर होना पड़ रहा है. देश के राजनीतिक दल को चलाने वाले किसी भी एक समझदार सर्वेसर्वा ने न कभी चाहा है और न ही वह चाहेगा कि सेना पर किसी भी तरह से सियासत का मनहूस साया पड़े. क्योंकि ऐसा होते ही भारत ने लोकतंत्र की जिस कमीज को पहन रखा है,उसके चिथड़े हो जाएंगे और हमारी हालत उत्तर कोरिया या फिर चीन की माफिक हो जाएगी,जहां सरकार और सेना पर सिर्फ एक ही शख्स का हुक्म चलता है.


वैसे सोचने वाली बात ये है कि ऐसा पहली बार तो हुआ नहीं कि हमारी पहाड़ी सरहदों पर पहली बार बर्फबारी हुई हो और उस बर्फ के जमने की आड़ लेकर आतंकी देश की सीमा में घुसपैठ करने की कोशिश न करें.ऐसा पहले भी अनेकों बार हो चुका है,लिहाज़ा आतंकियों के ऐसे मंसूबे को नाकाम करने के लिए हमारे सैनिक जरूरत से भी ज्यादा मुस्तैद रहते हैं.लेकिन शायद ऐसा पहली बार हो रहा है कि जब सरहदी सीमाओं पर बर्फ पिघलने की शुरुआत हो चुकी हो,तब ये कहा जाए कि सीमापार से सैकड़ों आतंकवादी घुसपैठ करने की तैयारी में हैं.अगर वाकई ऐसा है,तब तो वे भारत की सीमा में नहीं बल्कि मौत के कुएं की तरफ आ रहे हैं क्योंकि उन्हें बचाने वाली बर्फ की दीवारें अब पिघलने की कगार पर हैं.


ऐसे हालात में सेना प्रमुख एमएम नरवणे (MM Naravane) ने कल जो बयान दिया है,उसे लेकर रक्षा जगत से लेकर सियासी हलकों में जो सवाल उठ रहे हैं, वे उनकी नीयत पर नहीं बल्कि इसकी टाइमिंग को लेकर हैं. रक्षा विशेषज्ञ कह रहे हैं कि सेना प्रमुख ने दो महीने पहले ये कहा होता, तो सबकी समझ में भी आता लेकिन अब तो सरहदों पर बर्फ पिघलना शुरु हो चुकी है और इस सूरत में सीमापार से कोई आतंकी घुसपैठ करने की सोचता है,तो समझिए कि वो अपनी मौत को दावत दे रहा है.


हालांकि हम न तो सेना प्रमुख के दावे पर कोई सवाल उठा रहे हैं और न ही उनकी नीयत पर लेकिन पत्रकारिता का पहला फर्ज होता है कि वह  सिक्के के दोनों पहलुओं को सामने रखते हुए जनता पर ये फैसला छोड़ दे कि वो किसे सही मानती है और किसे गलत. सियासी गलियारों में सवाल ये उठ रहा है कि यूपी समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की तारीख़ों का ऐलान होने के तुरंत बाद ही सेना प्रमुख को ऐसा बयान आखिर क्यों देना पड़ा?क्या उन्हें इसके लिए मजबूर किया गया और अगर नहीं तो फिर हफ्ते-दस दिन पहले ही ये बोलने से उन्हें किसने रोका था?


लेकिन हमें सियासी हलकों में उठ रहे सवालों को तवज़्ज़ो इसलिये भी नही देनी चाहिए क्योंकि सेना प्रमुख ने अपना बयान सेना दिव‌स ‌यानी (15 जनवरी) से पहले बुधवार को हुई अपनी सालाना प्रेस कांफ्रेंस में दिया है.थल सेना प्रमुख नरवणे ने कहा कि पाकिस्तान (Pakistan) की ओर से 350-400 आतंकी भारत में घुसपैठ करने के लिए तैयार हैं.लेकिन साथ ही उन्होंने ये भी चेता दिया कि हमारी नीति आतंकवाद के प्रति 'जीरो टोलरेंस' है.


वैसे अगर कोई भी सियासी चश्मा लगाए बगैर देखा जाए,तो जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने का निर्णय और उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने का जो फैसला लिया,उसकी विपक्षी दल चाहे जितनी आलोचना करें,लेकिन आतंकवाद का खात्मा करने में ये बेहद अहम हथियार साबित हुआ है.भारत और पाकिस्तान के बीच कई सालों से युद्धविराम के समझौते होते आये हैं,जो परवान नहीं चढ़े.लेकिन शायद ऐसा पहली बार हुआ है,जब सेना प्रमुख ने भी माना कि पिछले साल यानि फरवरी 2021 में भारत और पाकि‌स्तान के डीजीएमओ के बीच एलओसी पर युद्धविराम समझौता दोनों देशों के लिए फायदेमंद रहा है और लंबे समय तक शांति रही है. उनके मुताबिक एलओसी पर सिवाय दो युद्धविराम की उल्लंघन की घटनाओं को छोड़कर अमूमन शांति ही रही है.


हालांकि, थलसेना प्रमुख ने यह भी साफ कर दिया कि एलओसी पर पाकि‌स्तान की तरफ अलग-अलग लॉन्च पैड पर 350-400 आतंकी अभी भी मौजूद है जो लगातार घुसपैठ की कोशिश कर रहे हैं. इससे पाकिस्तान के गलत इरादों के बारे में पता चलता है. जनरल नरवणे ने कहा कि भारत की आतंकवाद के प्रति 'जीरो टोलरेंस' नीति रही है.उन्होंने कहा कि अगर आतंकवाद को भारत पर थोपने की कोशिश हुई तो इसकी बड़ी कीमत पाकिस्तान को चुकानी पड़ेगी.


वैसे एक तथ्य ये भी है कि पिछले दो-तीन साल में एलओसी और बॉर्डर पर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और उसकी सेना ने ड्रोन के जरिये हम पर हमले करने की रणनीति बनाई है क्योंकि उसके ट्रेंड किये हुए आतंकी अब भारत की सीमा में घुसपैठ करने में नाकाम हो रहे है.इस बारे में भी सेना प्रमुख से सवाल किया गया था,तो उनका कहना था कि ड्रोन का इस्तेमाल हथियारों की स्मगलिंग और लॉजिस्टिक के लिए ज्यादा किया जा रहा है.लेकिन हमारी सेना उसे पकड़ने में भी बेहद सक्षम है.


लेकिन ये सच तो हम सब जानते हैं कि पाकिस्तान हमारा सबसे नजदीकी पड़ोसी है लेकिन वह दुश्मन भी है क्योंकि वो सिर्फ आतंकवाद पैदा ही नही करता बल्कि उसे पालता-पोसता है और फिर हमारी जमीन पर खून बरसता देख जश्न भी मनाता है.लेकिन दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में बरसों पहले जो बात कही थी, वो तब भी उतनी अहम थी,आज भी है और शायद आगे भी रहेगी.उन्होंने कहा था- "हम सब कुछ बदल सकते हैं लेकिन अपना पड़ोसी नहीं बदल सकते.इसलिये अगर हमारा पड़ोसी खुराफ़ाती है,तो उससे निपटने के तरीके भी हमें ही तलाशने होंगे." इसलिये अब सवाल ये है कि मोदी सरकार ने इस खुराफ़ाती पड़ोसी से निपटने का माकूल तरीका क्या तलाश लिया है?


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