156 साल पहले रूस से खरीदे गए अमेरिकी राज्य अलास्का में विवादास्पद तेल खनन परियोजना को बाइडन सरकार से मंजूरी मिलने के बाद इसकी तीखी प्रतिक्रिया हो रही है. पर्यावरणविदों औऱ जलवायु परिवर्तन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने सरकार के इस फैसले पर कड़ी नाराजगी जताई है. उनका मानना है कि इससे पर्यावरण पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ेगा और वन्य जीवों की बड़ी आबादी इससे प्रभावित होगी. साल 1959 में अलास्का को अमेरिका का 49 वां राज्य बनाया गया था. यहां नेचुरल गैस व पेट्रोलियम पदार्थों समेत हीरे-सोने का अथाह भंडार है.


हालांकि अलास्का प्रशासन ने बाइडन सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हुए दलील दी है कि इससे हजारों लोगों को नौकरियां मिलेंगी और राज्य की करोड़ों डॉलर का राजस्व प्राप्त होगा लेकिन परियोजना का विरोध करने वालों के मुताबिक इसका जलवे और वन्य जीवन पर बेहद बुरा प्रभाव होगा. वैसे साल 2020 में ट्रम्प प्रशासन ने भी तेल ड्रिलिंग प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी, लेकिन तब एक संघीय जज ने इस आधार पर रोक लगा दी थी कि इसमें ऐसे कोई उपाय नहीं किए गए हैं कि इससे वन्य जीवों खासकर ध्रुवीय भालुओं पर कोई दुष्प्रभाव न हो. सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनी ConocoPhillips करीब 8 अरब डॉलर की लागत से तेल और गैस का खनन करेगी.न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक इस प्रोजेक्ट से अगले 30 सालों में 600 मिलियन बैरल तेल मिलेगा,जो कि अमेरिका के मौजूदा तेल भंडार से डेढ़ गुना ज्यादा है. हालांकि कंपनी का दावा है कि इससे अमेरिका को 17 बिलियन डॉलर का राजस्व प्राप्त होगा,जबकि ढाई हजार लोगों को नौकरी मिलेगी.इसे अलास्का के इतिहास में संसाधन जुटाने की सबसे बड़ी परियोजना माना जा रहा है.


हालांकि बाइडन प्रशासन ने पांच की बजाय तीन ड्रिल साइट्स को ही मंजूरी दी है, ताकि जलवायु पर इसका दुष्प्रभाव कम हो लेकिन पर्यावरण एक्टिविस्ट मानते हैं कि चूंकि ये ड्रिलिंग देश की ऐसी सबसे बड़ी जमीन पर हो रही है,जहां सिर्फ घास ही घास है.लिहाज़ा प्रोजेक्ट शुरू होने से वहां रहने वाले और अन्य प्रवासी जानवरों पर इसका बुरा असर पड़ेगा.  वैसे अमेरिकी सरकार की एजेंसी Bureau of Land Management ने भी पिछले महीने अपनी एक रिपोर्ट में इस प्रोजेक्ट स्थल को गंभीर बताते हुए चेताया है कि इससे स्थानीय वन्य जीवों के साथ ही हजारों पक्षियों पर भी असर पड़ेगा,जिन्होंने वहां के घोंसलों में अपना ठिकाना बना रखा है.


इस प्रोजेक्ट को "कार्बन बम" बताया जा रहा है क्योंकि इससे 260 मिलियन टन ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित होगी ,जो कि 70 नए कोयला प्लांट के बराबर है, लेकिन इस परियोजना को मंजूरी देना बाइडन प्राशासन के लिए भी मजबूरी था.खनन करने वाली कंपनी ने संभावित ड्रिलिंग साइट वाली जमीन को पिछले दो दशक से पट्टे पर ले रखा था.अगर सरकार मंजूरी नहीं देती,तो कंपनी कोर्ट चली जाती और तब सरकार को करीब 5 अरब डॉलर का भुगतान करना पड़ता. कभी रूस का स्वर्ग कहा जाना वाला अलास्का अमेरिका के लिए किसी खजाने से कम नहीं है.30 मार्च 1867 को अमेरिका ने सोवियत यूनियन से अलास्का खरीद लिया था. जानकर आश्चर्य होगा कि अमेरिका ने तब अलास्का मात्र 72 लाख डॉलर यानी 45 करोड़ 81 लाख रुपये में खरीदा था. रूस को अलास्का को बेचने का अभी भी पछतावा होता है और इसकी वजह है अलास्का में मौजूद भरपूर तेल के भंडार, गोल्ड व डायमंड माइंस. हालांकि रूस की जनता इसके खिलाफ थी. बावजूद इसके जार अलेक्जेंडर ने 30 मार्च 1867 को अलास्का बेचने के डॉक्यूमेंट्स पर साइन कर दिए थे. 


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.