उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने 16 उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं


दे रहे हैं बड़ा संदेश 


अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में लगातार और पूरी तरह सक्रिय हैं. वह नहीं चाहते हैं कि किसी भी वजह से उनकी चुनावी तैयारियों में दिक्कत या कमी आए. वह एक संदेश भी अपने वोटर्स या आम तौर पर सभी वोटर्स को देना चाहते हैं, कि उनकी पीडीए की राजनीति आगे बढ़ रही है. पहले उन्होंने जयंत चौधरी के साथ अपनी सीटों की घोषणा की और फिर जब कांग्रेस के साथ 11 सीटों की घोषणा की तो कांग्रेस, खास तौर पर जो यहां का स्थानीय नेतृत्व था यूपी में कांग्रेस का, उसमें बेचैनी हुई. उस बेचैनी का अर्थ इसलिए नहीं निकला कि कांग्रेस इस हालत में ही नहीं है कि वह खुद इस गठबंधन से बाहर निकले. यह बात अखिलेश यादव को पहले दिन से पता है. वह ये भी चाहते हैं कि चीजें जल्द से जल्द हो जाएं. इंडिया गठबंधन में कई तरह की देर हो रही है. खासकर, जो राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय है, उसमें कई तरह के भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी है. नीतीश का जाना, ममता का अकेले लड़ने का ऐलान, आम आदमी पार्टी का रुख वगैरह ऐसी बातें हैं जो भ्रम को और बढ़ा रही हैं. चीजें जटिल हो गयी हैं, लेकिन अखिलेश नहीं चाहते कि यूपी में इनका कोई प्रभाव पड़े. वह एक-एक कदम बढ़ा रहे हैं, लेकिन नापतोल कर कदम बढ़ा रहे हैं. वह जब 11 सीटों की बात करते हैं तो उनके जाननेवाले बताते हैं कि उन्होंने दो-तीन सीटों की गुंजाइश वहां भी रख छोड़ी है. 



अखिलेश रख रहे गठबंधन का खयाल


जब अखिलेश यादव ने 16 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित किए तो उसमें कोई चौंकाऊ नाम नहीं था. अधिकांश वैसे ही नाम थे, जिनकी उम्मीद पहले से लोगों ने लगा रखी थी. इन टिकटों से एक संदेश भी उन्होंने दिया है. सपा को हमेशा ही भाजपा ने मुस्लिमों-यादवों की पार्टी घोषित किया है. हालांकि, कल जब उनकी उम्मीदवारों की सूची आयी है, तो उसमें चार कुर्मी भी हैं, पाल समाज है, निषाद समाज भी है, तो यह एक मैसेज उन्होंने दिया है कि वह सभी के हैं, किसी एक समाज के नहीं हैं. कांग्रेस को भी फैसला अब जल्द ही लेना होगा. अगर वह इसी तरह ढीली पड़ी रही तो मुश्किल उसी के लिए होगी. उसकी ऐसी स्थिति नहीं है कि वह 80 सीटों पर लड़ ले और गठबंधन से हट जाए. जानकारों का यह भी कहना है कि सपा के पास तो पूरे 80 सीटों पर उम्मीदवार हैं, लेकिन वह जान-बूझकर चरणों में उनके नाम घोषित कर रही है. इसमें मायावती फैक्टर कोई सीधे तौर पर नहीं है. अभी कोई दलित नाम सपा की तरफ से आया भी नहीं है. हालांकि, लालजी वर्मा बसपा से ही आए हैं और अंबेडकर नगर में सपा ने अपने पुराने नेताओं को पीछे कर वर्मा को आगे किया है. इस बीच मायावती के खेमे से भी यह खबर आयी है कि बहुत जल्द बहनजी भी टिकटों की घोषणा कर देंगी. 


कांग्रेस की तैयारी बहुत ढीली


अभी किसी पार्टी ने टिकटों की घोषणा नहीं की है. यहां तक कि भाजपा भी इस बार पीछे रह गयी है. वहां भी खबर है कि 60 फीसदी सांसदों के टिकट बदले जाएंगे, तो उन बदले हुए लोगों के बदले किनको टिकट दिया जाएगा, यह भी अभी तय नहीं है. इसको लेकर भ्रम है. इसी बीच अखिलेश यादव ने यह चाल जो है, अपनी चल दी है. कांग्रेस के साथ जहां तक महावीर प्रसाद वाली बात है, वह एक कम्युनिकेशन की गलती कही जाएगी. वह लंबे समय तक बांसगांव सीट से जीतते रहे हैं, लेकिन उनकी करीब दशक भर पहले मौत हो चुकी है. इस आधार पर कांग्रेस ने टिकट मांगी, जिस पर हंगामा हुआ है. हालांकि, कांग्रेस के स्थानीय नेता भी यह मान चुके थे कि वे 10 से 15 सीटों पर लड़ने के लायक हैं. पहले 28 फिर 23 और आखिरकार 15 सीटों पर दावा सिमट गया. हालांकि, सपा ने जब जिताऊ सीटों पर कांग्रेस से सूची मांगी, तो वहां कांग्रेस के सामने दिक्कत आनी ही थी और वो आयी भी. वास्तविकता यही है कि कांग्रेस के सामने जिताऊ उम्मीदवारों का टोटा है. बहुत कम ऐसे नेता हैं जो जूझ कर लड़े और जीतें, वो भी तब जब रालोद या सपा उनके साथ हो, उनकी मदद करे.अखिलेश यादव इस बात को जानते हैं और इसीलिए दबाव भी बनाए हुए हैं. 


इंडिया अलायंस में नया कुछ नहीं


कांग्रेस के इंडिया गठबंधन में नीतीश, ममता, आम आदमी पार्टी और अखिलेश के अलावा नया तो कुछ नहीं था. बाकी, तो पुराने यूपीए के साथी थे ही. कांग्रेस और ममता दोनों के ही रणनीतिकारों को यह लगा था कि दोनों साथ लड़ेंगे तो भाजपा को स्पेस मिलेगी. पंजाब की भी यही बात है. दिल्ली में कांग्रेस और आआपा साथ लड़ सकते हैं, पंजाब में नहीं. उसका कारण वही है कि भाजपा को स्पेस मिलेगी. वर्तमान राजनीति जो भारत की है, वह अलग तरह से बन रही है. विपक्ष की रणनीति यही है कि किसी भी तरह भाजपा को केंद्र में आने से रोकना है. उसके लिए अलग जगहों पर अलग रणनीति बन रही है. तल्खियां जारी हैं, दिक्कत केवल ये है कि समन्वय समिति ही केंद्रीय स्तर पर गायब है.  


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