राजधानी दिल्ली के चुनाव हो जाने के बाद एग्जिट पोल में जो नतीजे आ रहे हैं. इसमें कुछ एग्जिट पोल बीजेपी की तरफ दिखा रहे हैं कि उनकी सरकार बन सकती है, कुछ आम आदमी पार्टी की तरफ दिख रहे हैं. हालांकि कांग्रेस का बहुत कम परसेंटेज वोट दिख रहा है, लेकिन अब आंकड़े कल यानी 8 फरवरी तक स्पष्टता के साथ आ जाएंगे. पिछली बार 2015-20 में आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत मिली थी और 'आप' को क्रमशः 67 और 62 विधानसभा सीटें मिली थी. इस बार उस तरह से मार्जिन नहीं है, इसके पीछे बहुत सारे फैक्टर हैं. एकतरफा कोई कारण नहीं है और उसमें एक बहुत महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि सड़क-पानी बहुत बड़ा मुद्दा रहा, पानी बहुत जगह पर साफ नहीं आ रहा है और नियमितता के साथ नहीं आ रहा है, सड़क बहुत जगह ख़राब तरीके की दिख रही हैं और उसमें चलना और आना-जाना बहुत मुश्किल हो जा रहा है.
बहुतेरे कारण हैं AAP के पिछड़ने के
कहीं ना कहीं एंटी इन्कम्बेन्सी के फैक्टर के अलावा मल्टीपल फैक्टर्स हैं और जब तक फाइनल अपडेट नहीं आता, तो हम 100% कुछ नहीं कहे सकते हैं. हालांकि, बीजेपी की सरकार बनने का बहुत अधिक योग लग रहा है, बीजेपी की सरकार बनेगी क्योंकि कांग्रेस का इस बार प्रदर्शन थोड़ा अच्छा हुआ है और क्योंकि त्रिकोणीय प्रदर्शन हो गया, इससे कुछ सीटें जो पहले आम आदमी पार्टी की तरफ जा रही थी वो कांग्रेस की तरफ चली गई है. इस वजह से कहीं ना कहीं हो सकता है कि 'आप' को नुकसान हो जाए इस 2025 के विधानसभा चुनाव में. पिछले 10 सालों में आम आदमी पार्टी ने जो वादे किए थे इसमें एक बहुत बड़ा वादा था प्रदूषण मुक्त हवा और पानी के प्रदूषण से मुक्त दिल्ली, जो कहीं नहीं हो पाया और उस पर काम भी नहीं हुआ. लोगों में कहीं ना कहीं उम्मीदें थीं और वे उम्मीदों को 'आप' पार्टी से पूरा होता हुआ नहीं देख रहे हैं. लोग सोच रहे हैं कि उनको सरकार बदलने का ऐसा मौका मिल रहा है, तो वे बदलाव भी चाह रहे हैं.
दिल्ली के इलाकों में बहुत जगह हमारे स्टूडेंट्स सर्वे के लिए गए थे, हमने बहुत लोकमत भी देखा है. बहुत जगह सोसाइटीज में जाकर वहां बातचीत की तो लगा कि महिलाओं का आम आदमी पार्टी के लिए समर्थन नहीं है है. केजरीवाल की सरकार में वेलफेयर पॉलिसी ने महिलाओं को फायदा तो पहुंचाया, जैसे फ्री बस राइड, बिजली, पानी इत्यादि से महिलाओं को एक तरीके का सशक्तीकरण तो महसूस हुआ है, लेकिन अब उसके ऊपर भी महिलाएं बहुत कुछ और भी एक्सपेक्ट कर रही थीं, तो शायद वह नहीं हो पाया.
इस बार भाजपा होड़ में
इसके पीछे एक यह भी कारण है और कहीं ना कहीं जो प्रदर्शन है इस बार भारतीय जनता पार्टी का वह भी काफी अच्छा रहा है. ग्रास रूट्स पर जाकर उन्होंने काम किए हैं. एक-एक लोगों से मिले हैं. मुझे लगता है कि जब कोई पार्टी लोगों के साथ जुड़ती है और ग्रास रूट के स्तर से उसके कार्यकर्ता यह देखते हैं कि यहां क्या और कहां कमी है और कार्यकर्ता उससे जुड़ते हैं, तो उसका भी असर पड़ता है. हो सकता है कि वहां से भी कुछ कमी रह गई होगी या फिर कुछ और उम्मीदें होंगी. ये सारी चीजें हैं जो कहीं न कहीं हो सकती हैं. आम आदमी पार्टी को सीटों का नुकसान हो सकता है. सर्वे में भारतीय जनता पार्टी की तरफ रुझान दिख तो रहा है. एंटी इनकम्बेन्सी फैक्टर तो है क्योंकि जब कोई भी सरकार निरंतरता से रहती है 5 साल तो फिर उससे एक उम्मीद होती है. उस उम्मीद को सरकार पूरा नहीं करती है तो कहीं ना कहीं लोग बदलाव चाहते हैं.
दूसरी बात यह भी है कि वह बदलाव इसलिए भी चाहते हैं क्योंकि जो काम होने चाहिए थे वह उस तरह से हुए नहीं. बार-बार वादा किया गया कि सड़क बन जाएगी, पानी साफ-सुथरा आएगा, प्रदूषण खत्म हो जाएंगे, पर वैसा हुआ नहीं. असल में जो लोग छठ पूजा करते हैं, उनकी बहुत समस्या है. उस तरह से गंदे पानी में उनको अपनी पूजा करनी पड़ी तो लोगों में नाराजगी तो होगी ही. वे चाहते हैं कि अगर कोई दूसरी पार्टी अच्छा कर रही है तो उनको भी मौका मिलना चाहिए. डेमोक्रेसी में अगर एक ही पक्ष सत्ता में बहुत समय तक रहती है तो शायद वो कहीं ना कहीं कुछ कमी आ जाती है. जो भी रीजन रहा हो, एब्सोल्यूट पावर की वजह से या फिर किसी और वजह से हो, लोग चाहते हैं कि बदलाव अगर हो जाए तो क्या पता जो लोग उम्मीद लगा रहे थे, इस बार वो हो जाए.
फ्रीबीज पर भी होनी चाहिए बात
फ्रीबीज की जहां तक बात है, तो वो चलता है. हालांकि, जिन लोगों के पास पहले से ही पैसे हैं या जो कोशिश कर सकते हैं, उनको हम फ्री बिजली दे रहे हैं या मुफ्त पानी दे रहे हैं तो कहीं न कहीं हमारी कल्याण नीति है, जो निम्न वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग के लिए होती है वो कहीं ना कहीं उसको नुकसान पहुंचाता है. इसलिए बहुत जरूरी है कि हम कल्याण नीति में उन लोगों को लक्ष्य बनाएं जो जरूरतमंद हैं. महिलाओं का प्रतिशत भी दिखाया जा रहा है कि महिलाओं ने काफी ज्यादा संख्या में वोट दिए हैं और AAP का समर्थन भी किया है कि जो भी काम हुआ है पानी, बिजली और महिलाओं की फ्री बस सेवा का, वह कहीं ना कहीं उनको सशक्त बनाते हैं.
हालांकि, कुछ लोग अलग भी तथ्य रखते हैं कि हमें फ्री में नहीं चाहिए. कुछ बच्चे चाहते हैं कि कुछ विकास का काम हो जाए जैसे जॉब ओरिएंटेशन, कौशल विकास आदि का काम हो जाए, ताकि लोगों को रोजगार मिल सके. पैसा अगर कहीं विकास में लग जाए तो ज्यादा अच्छा है क्योंकि फ्री में फिर सभी राजनीतिक दल वायदे करने लगेंगे. इसी पॉलिसी को देखते हुए कांग्रेस ने भी वादा किया, भारतीय जनता पार्टी ने भी कुछ वादे किए.
कहीं ना कहीं ये फ्रीबीज कल्चर हावी है. अगर कोई भी पार्टी या विचारधारा उसको नकारती है तो बहुत हद तक सही नहीं होगा, क्योंकि जो गरीब तबके के लोग हैं, उनको इस तरह की सब्सिडी या कुछ ऐसी छूट चाहिए ताकि वो अपनी रोजी-रोटी और जीविका चला सकें. कहीं न कहीं उनको कुछ बेहतर रहन-सहन मिल सके. ये जो कल्चर चला है, वह लक्षित होना चाहिए.
अगर हम ज्यादा ही फ्रीबीज की बात करेंगे तो लोगों को लगेगा कि सरकार सिर्फ फ्री की चीजों को बांटने की बात करती है और बाकी विकास का मुद्दा कहीं न कहीं हाशिए पर जा रहा है. इसलिए बहुत जरूरी है कि हम फ्री योजना लोगों को लक्षित तारीख से ही दें. हमें किसको देना चाहिए? कितने समय के लिए देना चाहिए? इन सारी बातों को तय करना बहुत ज़रूरी है.
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