सामान्य जीवन में लोग किसी कार्य को जोर शोर से शुरू करते हैं. थोड़े समय बाद उनके विचार बदलने लगते हैं. वे कार्य से निराश होने लगते हैं. कई बार तो वे कार्य बदलने तक तैयार हो जाते हैं. ऐसा होना स्वाभाविक भी है. हालांकि, ऐसा तभी होता है जब व्यक्ति के विचार स्पष्ट नहीं होते हैं. उसे अपनी शिक्षा, अनुभव और चिंतन पर भरोसा नहीं होता है.
 
आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य सदैव विचारों पर दृढ़ता से कायम रहे. उन्होंने प्रत्येक विषय पर पूर्ण चिंतन मनन के बाद निर्णय की स्थापना की. उस निर्णय पर हर संभव कायम रहे. इसी का परिणाम रहा कि एक साधारण शि़क्षक विदेशी आक्रांताओं से देश की रक्षा कर पाया. स्वदेश में भी भ्रष्ट व्यवस्था को उखाड़ फेंकने में कामयाब रहा. आचार्य ने कोई कार्य व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए नहीं किया. वे देश समाज और संस्कृति को समर्पित रहे. इनकी रक्षा को उत्पन्न विचारों पर दृढ़ रहे. इसी कारण उनके लक्ष्य स्पष्ट रहे. लक्ष्यों में भटकाव नहीं आया. न ही वे उनसे विचलित हुए और न ही ऊबे.



चाणक्य का कालखंड हो या वर्तमान काल व्यवहार के सामान्य नियम एक प्रकार के ही होते हैं. इस पर चाणक्य की जीवनशैली हमें प्रेरित करती है कि हमें किस प्रकार आगे बढ़ना चाहिए. एक बार यात्रा के दौरान चाणक्य को कांटा चुभ गया. चाणक्य ने नजदीक गांव से मठा या कहें छाछ लाकर उसमें मिश्री घोलकर डाल दी. उनके शिष्यों ने जब चाणक्य से पूछा कि गुरुदेव आपने ऐसा क्यों किया? इस पर चाणक्य बोले कि यह पेड़ मेरी तरह कई राहगीरों को तकलीफ पहुंचाता. इसके कांटे कई पथिकों के कंटक बनते. अब चीटिंया इस पेड़ को नष्ट कर मार्ग को निष्कटंक कर देंगी. यह बात सिर्फ मेरे तक सीमित रहती तो कदापि मैं ऐसा नहीं करता.