Pradosh Vrat: हर महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष को त्रयोदशी मनाते हैं. प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है. सूर्यास्त के बाद और रात्रि के आने से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है. प्रदोष व्रत में भगवान शिव कि पूजा की जाती है. माना जाता है कि भगवान शिव प्रदोष के समय कैलाश पर्वत स्थित अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं. इस दिन शिव जी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है.
प्रदोष को कई जगहों पर अलग-अलग नामों द्वारा जाना जाता है. दिन के अनुसार इसके नाम और महत्व अलग-अलग होते हैं. जो प्रदोष व्रत शनिवार के दिन पड़ता है उसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है. आषाढ़ मास का अंतिम प्रदोष व्रत 1 जुलाई को रखा जाएगा. दोष व्रत के दिन विधीपूर्वक माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है. पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से बेहतर स्वास्थ और लम्बी आयु का वरदान मिलता है.
शनि प्रदोष का व्रत रखने से शिव जी प्रसन्न होते हैं और शनि दोष दूर होता है. शनि प्रदोष के दिन शुभ मुहूर्त में शिव जी की पूजा करने से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है और सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
प्रदोष व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त
शनि प्रदोष पूजा मुहूर्त- शाम 07 बजकर 23 मिनट से लेकर रात 09 बजकर 24 मिनट तकलाभ-उन्नति मुहूर्त - शाम 07 बजकर 23 मिनट से लेकर रात 08 बजकर 39 तक
शनि प्रदोष व्रत की पूजन विधी
प्रदोष व्रत वाले दिन पूजा के लिए प्रदोष काल यानी शाम का समय शुभ माना जाता है. इसके लिए सूर्यास्त से एक घंटे पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. पूजा-पाठी की पूरी तैयारी कर लें. स्नान के बाद संध्या के समय शुभ मुहूर्त में पूजा आरंभ करें. गाय के दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करें. अब शिवलिंग पर श्वेत चंदन लगाकर बेलपत्र, मदार, पुष्प, भांग चढ़ाए और विधिपूर्वक पूजन और आरती करें.
शनि प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत करने से भक्तों को बहुत पुण्य मिलता है. इसका व्रत रखने से भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और भक्तों के सभी दुख दूर करते हैं. प्रदोष व्रत करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है. जो लोग संतानहीन हैं, उन लोगों को शनि प्रदोष व्रत जरूर करना चाहिए. माना जाता है इस व्रत को करने से शिव की कृपा से जातक को संतान की प्राप्ति होती है.
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