Holi 2023, Shani Dev: होली  के उस्तव में उड़ते रंगों से भला शनि से क्या लेना-देना, पर यह सच नहीं है, इन पर भी रंग के छींटे लगते हैं. कई लोगों का मानना है कि इससे शनि रूष्ट न होकर खुश होते हैं. आज हम आपको शनि से जुड़े ऐसे सच के बारे में बताएंगे जो श्री कृष्ण (Shree Krishna) की लीला से सम्बंध रखते हैं, साथ ही तो होली (Holi Celebration) के उड़ते रंगों से भी.


यह बात रोचक भी है और आश्चर्यजनक भी, क्योंकि इसकी सत्यता प्रत्यक्ष देखी जा सकती है. कोई भी साधक इस बात को जान और समझ सकता है, और इस अद्भुत दृश्य में सहभागी बन सकता है. 



बाल कृष्ण और शनि की कथा (Shani Katha)


पौराणिक कथा के अनुसार शनि देव (Shani Dev) अपने ही दुर्भाग्य पर फूट-फूट कर रोते-बिलखते विलाप करने लगे थे. उनके नैत्रों से बहती अश्रु धारा रूक नहीं रही थी. अपना तिरस्कार होने, डांट-डपट खाकर उल्टे पांव लौट जाने की स्थिति ने उन्हें बुरी तरह आहत कर दिया था. दूसरों के भाग्य को दुर्भाग्य तथा सौभाग्य में बदलने, अपनी साढ़ेसाती आदि से त्रस्त करने वाले, देवाधिदेव श्री शिव की कृपा से 'न्यायाधीश' तक बने शनि को समझ में नहीं आ रहा था कि उनके ही साथ ऐसा क्यों हो रहा है.


यह समय था श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का, उनकी माता यशोदा अपने इस लाल का सभी को दर्शन करा रही थी. कई ऋषि, मुनि, विद्वान आदि सभी बालरूप श्री कृष्ण की एक झलक देखकर कृतार्थ हो रहे थे. तभी किसी ने यशोदा से कहा कि शनि भी लला के चेहरे की झलक देखने बाहर प्रतिक्षा में खड़े हैं, तो यह सुनते ही वह क्रोध के मारे आग बबूला हो गई. ‘उसे नहीं दिखाना मेरे लला को‘- कहते तुरंत ही बालरूप श्रीकृष्ण के माथे पर बड़ा-सा काजल का टीका लगा दिया तथा गले में बजर बट्टू की माला पहना दी कि कहीं बालक श्रीकृष्ण को शनि की नजर न लग जाये.


फिर तुरंत बाहर आयीं और बोली हे शनि देव! आप यहां से प्रस्थान कीजिए, चले जाईये, बाल-गोपाल अभी सो रहे हैं. उनके दर्शन सम्भव नहीं है.‘ शनि समझ गये अपने दुर्भाग्य को, उनका हृदय अपने इष्ट के दर्शन कर पाने के लिये फटा जा रहा था. शनि कुछ दूर जाकर विलाप करने लगे.


इनका विलाप सुनकर श्रीकृष्ण द्रवित हुए बिना नहीं रह सके. वह उनके सामने उपस्थित होकर बोले- ‘तुम्हारी तपस्या सफल हुई, शनि मैं तुम्हारे सामने उपस्थित हूं जी भरकर देख लो.‘ तब शनि यमुना के जल में ही श्रीकृष्ण दर्शन करते रहे. दोनों के इस पवित्र मिलन में यमुना भी शामिल हो गई क्योंकि यमुना शनि की ही बहिन हैं.


कृष्ण ने कहा- ‘हे शनि! तुम यही स्थित हो जाओ, यमुना किनारे शिला बनकर, तुम्हारे सानिध्य में ही मैं रासलीला करूंगा, तुमसे ही टिक कर खड़े होउंगा, मेरे साथ-साथ अनेकों दिव्य अप्सरायें, गोपियां बनकर तुम्हारे सामने शरद् पूर्णिमा की रात्रि में ब्रह्माण्ड का सबसे दिव्य महोत्सव रासलीला संपन्न करेंगी. सभी ग्रहों में मात्र तुम्हें ही मेरा सानिध्य सबसे ज्यादा प्राप्त होगा, तुम्हारे उपर ही बैठकर मैं बंशी की धुन छेड़ूंगा. फिर ऐसा ही सब कुछ हुआ जैसा कि कृष्ण ने कहा था. वृन्दावन के कोकिलावन में आज भी उस स्थान पर दिव्य शनि शिला मौजूद है.


इस समय जब ब्रज में होलिकोत्सव की धूम मचती है, रंग, गुलाल उड़ते हैं. गोकुल, वृन्दावन, मथुरा में जब उड़ते रंगों के बादलों की छटा से सुरम्य वातावरण बनता है तब कई लोग इस शनि शिला पर भी रंग उड़ेलते हैं, टीका लगाते हैं. शनि से आशीर्वाद तथा कृपा मिलने के साथ कष्टों से मुक्ति, स्थायी शुभत्व, सुरक्षा की कामना की जाती है. कईयों की तो शनि शिला के चारों तरफ एक दूसरे पर रंग डालते, गाते, नाचते तक भी देखा गया है. यहां जाति-पाति का कोई भेद नहीं रहता.


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