Death Philosophy: वेद, पुराण और हिंदू धर्म शास्त्रों में मृत्यु का वर्णन मिलता है. पवित्र ग्रंथ भागवत गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को मृत्यु के सत्य से परिचित कराते हैं. धर्म ग्रंथों के अनुसार, जिसका जन्म पृथ्वी पर हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है. मृत्यु ऐसा अटल सत्य है, जिसे कोई टाल नहीं सकता है. 


शास्त्रों में बताया गया है कि, जिस तरह से सभी व्यक्ति के जन्म की तारीख होती है. उसी तरह से वह अपनी मृत्यु की तारीख भी लिखवाकर आता है. हालांकि पुराणों में बताया गया है कि, व्यक्ति के कर्मों के आधार पर उसकी मृत्यु की उम्र घटती और बढ़ती भी है. 



अच्छे और पुण्य कर्म करने वाले को भगवान से दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है तो वहीं बुरे कर्म करने वाले मृत्यु का श्राप पाकर पहले ही मर सकते हैं. यही कारण है कि, कुछ लोगों की मृत्यु समय से पहले और बेहद कष्टदायक स्थिति में होती है. आइये जानते हैं, किन कारणों से व्यक्ति अपनी पूर्णायु का भोग नहीं पाता.


कितने वर्ष की होती है मनुष्य की जीवन आयु


महाभारत के उद्योगपर्व में धृतराष्ट महात्मा विदुर से प्रश्न करते हैं कि, जब सभी वेदों में मानव की आयु सौ वर्ष बताई गई है, तो फिर वो कौन से कारण हैं, जिससे वह अपनी पूर्णायु को भोग नहीं पाता और समय से पहले उसकी मौत हो जाती है. वेदों के अनुसार, मानव की आयु सौ वर्ष की होती है.


शतायुरुक्ता पुरूषः सर्ववेदेषु वै यदा।
नाप्नोत्यथ च तत् सर्वमायुः केनेह हेतुना।।


इस श्लोक में विदुर जी धृतराष्ट को ऐसे छह कारणों के बारे में बताते हैं, जिससे मानव अपनी पूर्णायु यानी सौ वर्ष की आयु का भोग नहीं कर पाता है. ये छह कारण इस प्रकार से हैं-



  • अभिमान: व्यक्ति का अभिमान ऐसा तलवार है, जिससे उसकी उम्र कटती है. अभिमानी व्यक्ति खुद को सबसे बड़ा श्रेष्ठ मानकर गुरुजनों, महात्मा और बड़े-बुजुर्गों का अनादर करने की भूल करता है. ऐसे लोगों के स्वभाव से भगवान भी रुष्ट हो जाते हैं और उसकी उम्र कम कर देते हैं. अगर आप लंबी आयु जीना चाहते हैं तो अभिमान को खत्म करें.

  • वाणी पर नियंत्रण न रखना: ऐसे लोग जो अधिक बोलते हैं, वह अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं रख पाते और किसी से कुछ भी कह देते हैं. ऐसे लोग जाने-अनजाने में लोगों का दिल भी दुखाते हैं. साथ ही जो लोग अधिक बोलते हैं वो झूठ भी बोलते हैं. इन्हीं कारणों से व्यक्ति की आयु घट जाती है.

  • त्याग की कमी: हर व्यक्ति में त्याग और समर्पण भाव होना चाहिए. जिनमें ये गुण नहीं होते वह कभी पूर्णायु का भोग नहीं कर पाते. इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है लंकापति रावण और दुर्योधन. रावण और दुर्योधन में त्याग की कमी थी. इसलिए इन्हें युद्ध करना पड़ा, जिसमें इनकी मृत्यु हुई.

  • क्रोध: जल्दी मृत्यु का एक कारण क्रोध भी है. क्रोधी व्यक्ति उचित-अनुचित को भूल जाता है और क्रोध में आकर वह हमेशा कुछ ऐसा कर बैठता है जो उसके अहित का कारण बनता है. भगवान कृष्ण ने कहा है कि, व्यक्ति को नरक पहुंचाने का कारण क्रोध होता है.

  • स्वार्थ: उम्र को कम करने का एक कारण स्वार्थ भी होता है. स्वार्थी व्यक्ति पापी भी होता है. क्योंकि अपने स्वार्थ के लिए ये बड़ा से बड़ा पाप भी करने में पीछे नहीं हटते हैं. यहां तक ये लोग युद्ध के मैदान में उतरने के लिए भी तैयार हो जाते हैं और खुद अपने जीवन के अंत का कारण बनते हैं.

  • धोखा: किसी के साथ धोखा या बेईमानी करने वाले लोगों को नीच मनुष्य कहा जाता है. ऐसे लोगों से यमराज नाराज रहते हैं और इन्हें मृत्यु का कठोर दंड भी देते हैं.


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