Sankashti Chaturthi Vrat: संकष्टी चतुर्थी हिन्दू धर्म का एक प्रसिद्ध त्यौहार है. हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. भगवान गणेश को सभी देवी-देवतों में प्रथम पूजनीय माना जाता है. देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए कई सारे व्रत-उपवास किए जाते हैं. इनमें भगवान गणेश के लिए किया जाने वाला संकष्टी चतुर्थी व्रत काफी प्रचलित है. चतुर्थी हर महीने में दो बार आती है. 

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संकष्टी चतुर्थी को भगवान गणेश की आराधना करने के लिए विशेष दिन माना गया है. इस महीने की संकष्टी चतुर्थी 30 नवंबर को मनाई जाएगी. संकष्टी चतुर्थी का अर्थ है संकट को हरने वाली चतुर्थी. इस दिन गणपति की अराधना करने से हर तरह के दुखों से छुटकारा मिलता है. चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करना बहुत फलदायी होता है. इस दिन सूर्योदय से लेकर चन्द्रमा उदय होने के समय तक उपवास रखा जाता है.

संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि

संकष्टी चतुर्थी के दिन गणपति की कृपा प्राप्त करने के लिए इस दिन प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें और व्रत का संकल्प लें. इस दिन लाल रंग का वस्त्र धारण करना बेहद शुभ माना जाता है. स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद गणपति की पूजा की शुरुआत करें. गणपति की पूजा करते समय जातक को अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए.  गणपति की मूर्ति को फूलों से अच्छी तरह से सजा लें. पूजा में तिल,गुड़,लड्डू,फूल, ताम्बे के कलश में पानी,धुप,चन्दन और प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रखें.

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गणपति की पूजा के समय देवी दुर्गा की प्रतिमा पास रखना बेहद शुभ माना जाता है. गणपति को रोली लगाएं, फूल और जल अर्पित करें. संकष्टी को भगवान् गणपति को तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं. गणपति के मन्त्र का जाप करें. जो लोग व्रत रखते हैं उन्हें पूजा के बाद सिर्फ फल, मूंगफली, खीर, दूध या साबूदाना खाना चाहिए. शाम के समय चांद के निकलने से पहले गणपति की पूजा करें और संकष्टी व्रत कथा का पाठ करें. यह व्रत रात को चांद देखने के बाद ही खोला जाता है. 

संकष्टी चतुर्थी का महत्व

संकष्टी के दिन गणपति की पूजा करने से घर से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं और शांति बनी रहती है. ऐसा कहा जाता है कि गणेश जी घर में आ रही सारी विपदाओं को दूर करते हैं और व्यक्ति की मनोकामनाओं को पूरा करते हैं. इस दिन चन्द्र दर्शन करना बहुत शुभ माना जाता है. सूर्योदय से प्रारम्भ होने वाला यह व्रत चंद्र दर्शन के बाद पूरा होता है. 

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