Prediction 2025: जब मंगल अपनी स्वयं की राशि वृश्चिक में प्रवेश करता है, तो यह केवल ग्रहों का परिवर्तन नहीं, बल्कि पृथ्वी की सामूहिक ऊर्जा का उफान होता है. 27 अक्टूबर 2025 से 7 दिसंबर 2025 तक चलने वाला यह गोचर वैश्विक परिदृश्य में रक्षा, शक्ति और रणनीतिक आक्रामकता को नया रंग देने जा रहा है. ग्रहों से ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं.

Continues below advertisement

वृश्चिक स्थिर जल तत्व की राशि है. यह छिपी योजनाओं, गुप्त कूटनीति और बदले की भावना का प्रतीक है. जब सेनापति मंगल इसमें आता है, तो देशों के भीतर आत्म-रक्षा और हथियार नीति को लेकर असामान्य सक्रियता दिखने लगती है. इस बार भी वही संकेत हैं कि रक्षा बजट बढ़ेंगे, हथियार सौदे तेज होंगे और अंतरराष्ट्रीय गठबंधन नई परिभाषाएं गढ़ेंगे.

इस गोचर के दौरान मंगल की दृष्टि कुंभ राशि (अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं) और मेष राशि (रक्षा-नीतियां) पर पड़ेगी. इसका सीधा अर्थ है संयुक्त राष्ट्र, नाटो और एससीओ जैसे मंचों पर नीतिगत हलचलें देखने को मिलेंगी साथ ही नई साझेदारियां, और AI-आधारित युद्ध-तकनीक पर प्रतिस्पर्धा भी.

Continues below advertisement

भारत की दृष्टि से यह काल Make in India Defence अभियान को बल देने वाला रहेगा. भारत की स्वतंत्रता-कुंडली वृषभ लग्न की है. इस दृष्टि से 27 अक्टूबर 2025 से 7 दिसंबर 2025 तक मंगल का वृश्चिक गोचर सप्तम भाव (Seventh House) में बनता है. जो राष्ट्र के विदेश संबंध, सैन्य समझौते, और अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों का भाव है.

मंगल का अपने ही घर से सप्तम भाव में होना एक अत्यंत प्रबल संयोजन बनाता है. यह संकेत देता है कि इस अवधि में भारत की रक्षा-राजनीति, रणनीतिक गठबंधनों और आयुध-नीति (Defence Procurement & Partnership Policy) में निर्णायक गतिविधियां देखने को मिल सकती हैं. भारतीय सैन्य उपकरण व हथियारों की मांग बढ़ेगी, कई देश भारत की तरफ हाथ बढ़ाएंगे.

इस भाव में स्वगृही मंगल राष्ट्र की कूटनीतिक दृढ़ता को बढ़ाता है, यानी भारत अपने हितों की रक्षा के लिए अधिक सशक्त और स्पष्ट रुख अपनाएगा. यह समय नए रक्षा अनुबंध, अंतरराष्ट्रीय सैन्य अभ्यास, और तकनीकी सहयोग को गति देने वाला सिद्ध हो सकता है.

दूसरी ओर, अमेरिका, चीन, रूस और इज़राइल अपने-अपने हथियार उत्पादन व तकनीकी प्रभुत्व को लेकर नई योजनाएं बनाएंगे. Quantum warfare, Drone intelligence और Cyber defence में निवेश बढ़ेगा.

बृहत्संहिता में कहा गया है कि यदा स्वगेहे भवति भूमिपुत्रो लोहितः, तदा युद्धेच्छा वसुधायाम् प्रवर्तते. यानी जब मंगल अपनी ही राशि में होता है, तब पृथ्वी पर युद्ध-इच्छा और शक्ति-प्रदर्शन की प्रवृत्ति बढ़ जाती है.

यही ऊर्जा इस बार भी सक्रिय है. यह समय शक्ति-संतुलन के पुनर्गठन का है, जहां एक ओर राष्ट्र आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेंगे, वहीं दूसरी ओर सुरक्षा के नाम पर भय-नीति भी तीव्र हो सकती है. मंगल की यह अग्नि, सृजन और विनाश दोनों का अवसर देती है. निर्णय मानव और उसकी नीतियों पर निर्भर है कि उसे दिशा क्या दी जाए.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.