Janeu Sanskar: हिंदू धर्म में 16 संस्कारों को जीवन में अपनाना जरूरी माना गया है. इन्हीं संस्कारों में दसवां, उपनयन संस्कार है. जिसे यज्ञोपवित यानी जनेऊ संस्कार के नाम से भी जाना जाता है. जिन लोगों का उपनयन संस्कार होता है, उन्हें गायत्री मंत्र की दीक्षा मिलती है. इसके बाद उसे आजीवन यज्ञोपवीत धारण करना होता है. इसमें पांच गाठें लगाई जाती हैं जो ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक हैं. यह पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेंद्रियों और पंच कर्मों का भी प्रतीक हैं.


जनेऊ में मुख्‍य रूप से तीन धागे होते हैं, जिन्हें तीन सूत्र कहा जाता है. यह सूत्र त्रिमूर्ति ब्रह्रमा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं जो देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं.माना जाता है कि जनेऊ धारण करने वालों को इसे पहनने से इन सभी का आशीर्वाद मिलता है. जनेऊ को बाएं कंधे के ऊपर और दाईं भुजा के नीचे पहना जाता है. जनेऊ धारण करने वाले व्यक्ति को कई सख्त नियमों का पालन करना होता है.


जनेऊ पहनने के नियम




  • जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र है, जिसे संस्कृत में यज्ञोपवीत के नाम से जाना जाता है. इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि ये बाएं कंधे के ऊपर और दाहिनी भुजा के नीचे रहे.  यह तीन आश्रमों के साथ ही गायत्री मंत्र के तीन चरणों का भी प्रतीक है.

  • यज्ञोपवीत को मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ को अच्छे तरीके से साफ करने के बाद ही उसे कान से उतारना चाहिए. इसका मुख्य उद्देश्य यही है कि यज्ञोपवीत कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न होने पाए. इस कर्म के माध्यम से धारण करने वाले को अपने यज्ञोपवीत व्रत की याद भी बनी रहती है. 

  • यज्ञोपवीत का कोई तार टूट जाए या इसे पहने 6 माह से भी अधिक का समय हो जाए, तो इसे पूर्णिमा के दिन बदल लेना चाहिए. खंडित यज्ञोपवीत को धारण किए रहना बहुत अशुभ माना जाता है. इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि इसके धागे गंदे न होने पाएं. अगर यह गंदे हो जाते हैं तो भी इसे बदल देना चाहिए. 

  • यज्ञोपवीत को कभी भी शरीर से बाहर नहीं निकाला जाता है, साफ करने के लिए उसे गले में पहने पहने ही घुमाकर धो लिया जाता है. अगर यह कभी गलती से उतर भी जाए तो भगवान से क्षमा मांगत हुए फिर से धारण कर लेना चाहिए. यज्ञोपवीत तभी कराना चाहिए, जब बालक इन नियमों का पालन करने योग्य हो जाए. 


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