Gold Price Prediction 2025: हर साल अक्टूबर के आसपास, जब सूर्य कन्या से निकलकर तुला राशि में प्रवेश करता है, एक दिलचस्प संयोग देखने को मिलता है, सोने की कीमतें या तो स्थिर हो जाती हैं या फिर उनमें मामूली गिरावट आने लगती है. बहुतों के मन में यह सवाल उठता है कि क्या यह मात्र आर्थिक गणित है या इसके पीछे कोई ज्योतिषीय तर्क भी छिपा है? क्या वास्तव में सूर्य का तुला राशि में जाना सोने की चमक को मंद करता है?
इस रहस्य को समझने के लिए ज्योतिष दो प्राचीन शाखाओं की मदद लेनी पड़ती है. मेदिनी ज्योतिष (Mundane Astrology) और मुद्रा ज्योतिष (Financial Astrology). दोनों शाखाएं मानव जीवन के नहीं, बल्कि सामूहिक घटनाओं जैसे मौसम, अर्थव्यवस्था, युद्ध या बाजार पर ग्रहों के प्रभाव को समझाती हैं. इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित यह अध्ययन दर्शाता है कि सूर्य और सोने के बीच का संबंध केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक और आर्थिक ऊर्जा का अद्भुत संगम है.
वैदिक ग्रंथों में सूर्य को हिरण्यगर्भ कहा गया है. अर्थात स्वर्ण गर्भ वाला देवता. यह शब्द ही बताता है कि सोना और सूर्य एक-दूसरे के ऊर्जा-स्रोत हैं. सूर्य तेज, वैभव और आत्मविश्वास का प्रतीक है. जब वह अपनी उच्चतम शक्ति में होता है. जैसे सिंह या मेष राशि में हो तो बाजार में उछाल और निवेशकों में उत्साह देखा जाता है. पर जब वही सूर्य तुला राशि में जाता है, जो उसकी नीच राशि मानी जाती है, तो उसका तेज क्षीण हो जाता है. शास्त्र कहता है कि नीच सूर्ये वैभव ह्रासः अर्थात सूर्य के नीच होने पर वैभव में गिरावट आती है.
तुला राशि का स्वामी शुक्र है, जो धन, सौंदर्य और भोग का प्रतीक ग्रह है. यह राशि तराजू का चिन्ह रखती है, यानी संतुलन और सौदेबाजी की राशि. सूर्य, जो स्वयं अधिकार और अहं का प्रतीक है, इस राशि में आकर असहज महसूस करता है. यही असंतुलन, बाजार में अनिश्चितता और निवेशक मनोवृत्ति में शांति का काल बनाता है. इस दौरान ग्रहों की गति से बनी ऊर्जा कहती है अब तेज नहीं, रुकने का समय है.
इतिहास के कुछ उदाहरण इस कथन को दिलचस्प रूप से प्रमाणित करते हैं. 2008 में जब सूर्य तुला राशि में था, शनि-राहु का संयोग बना और विश्व बाजार में तीव्र गिरावट आई. 2013 में गुरु वक्री था, और उसी समय सोना लगभग नौ प्रतिशत गिरा. 2020 में सूर्य तुला में और गुरु मकर में वक्री थे तो परिणामस्वरूप बाजार ने सुधार की प्रक्रिया अपनाई और सोना पांच प्रतिशत नीचे आया. हालांकि, हर बार यह प्रभाव समान नहीं रहा. कुछ वर्षों में केवल अस्थिरता रही, लेकिन कोई बड़ी गिरावट नहीं हुई.
इससे यह स्पष्ट होता है कि सूर्य का तुला गोचर कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं, बल्कि एक संकेत है. एक ऊर्जा परिवर्तन जो मानव मनोविज्ञान को प्रभावित करता है. भारत और एशिया के बाजारों में निवेशक ग्रह-गोचर पर भरोसा करते हैं. जब सामूहिक रूप से यह धारणा बनती है कि सूर्य नीच है, तो जोखिम उठाने की प्रवृत्ति घटती है. नई खरीद रुक जाती है, और लाभ-संग्रह (Profit Booking) बढ़ जाती है. यह मनोवैज्ञानिक लहर ही सोने के भावों में अस्थायी गिरावट लाती है.
लेकिन आर्थिक दृष्टि से भी यह समय महत्वपूर्ण होता है. अक्टूबर-नवंबर की अवधि पश्चिमी दुनिया के लिए वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही होती है. इस समय डॉलर प्रायः मजबूत होता है, ब्याज दरें बढ़ती हैं और निवेशक सुरक्षित विकल्प चुनते हैं. यही वह समय है जब वास्तविक बाजार-कारक भी सोने की कीमतों को दबाते हैं. इसीलिए जब ज्योतिष कहता है कि सूर्य नीच है, और अर्थशास्त्र कहता है कि डॉलर मजबूत है तो दोनों अलग-अलग भाषा में एक ही घटना को व्यक्त कर रहे होते हैं, संतुलन की वापसी.
पिछले 15 वर्षों के सोने के भाव World Gold Council और TradingView के आंकड़े बताते हैं कि सूर्य के तुला गोचर के दौरान कीमतें अमूमन स्थिर या थोड़ी नीचे रहती हैं, और अगले गोचर यानी जब सूर्य वृश्चिक या धनु राशि में जाता है तो इसके बाद पुनः उछाल देखने को मिलता है. ज्योतिषीय दृष्टि से यह वह क्षण है जब सूर्य पुनः अग्नि तत्व में प्रवेश करता है और अपनी खोई हुई ऊर्जा लेकर लौटता है.
शास्त्र ये भी कहते हैं कि ग्रह कर्त्ता नहीं होते, वे केवल आईना हैं. वे केवल समय का संकेत देते हैं. सूर्य का तुला राशि में जाना एक ऐसे काल का संकेत है जब चमक की बजाय संतुलन आवश्यक होता है. सोना, जो सूर्य का भौतिक प्रतीक है, उसी सिद्धांत का पालन करता है, थोड़ी देर विश्राम लेकर फिर और दमकने के लिए तैयार होना.
निवेशकों के लिए यह संकेत है कि तुला गोचर के समय घबराहट या Panic Selling से बचें. यह काल लगभग तीस दिनों का होता है, और इसके बाद सूर्य वृश्चिक राशि में प्रवेश करते ही बाजार की ऊर्जा फिर सक्रिय हो जाती है. यदि इस दौरान शुक्र या गुरु शुभ स्थिति में हों, तो यह गिरावट बहुत अल्पकालिक साबित होती है.
कहने का अर्थ यही है कि सूर्य का तुला गोचर सोने की कीमतों को प्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित नहीं करता, लेकिन यह निवेशकों के मनोविज्ञान, संतुलन और आर्थिक प्रवाह पर सूक्ष्म प्रभाव डालता है. इसे शास्त्र में नीचत्व का संतुलन कहा गया है.
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