Agriculture Growth: किसानों के लिए खेती उनके जीवन में सबकुछ होती है. आपदा में आने वाली बाढ़, बारिश और सूखे से किसानों की फसलें तबाह हो जाती हैं. वहीं, कई किसान ऐसे भी हैं, जोकि खेती को ही सबकुछ मानकर उसमें जीने लगते हैं. बदले में भूमि भी उनको लाखों रुपये का मुनाफा कमवाकर इनाम देती है. उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के किसान भी ऐसे ही खेती में नाम रोशन कर रहे हैं. अच्छी बात यह है कि उन्हें नई तकनीक इजाद कर आलू की पैदावार से ही लाखों रुपये का मुनाफा भी कमाया है.

56 इंच तकनीक से 200 क्विंटल आलू की पैदावारउत्तर प्रदेश में आलू की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. यहां के आलू को देश और विदेशों में खूब पसंद किया जाता है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश के बारबंकी के किसान पद्मश्री किसान राम सरन वर्मा आलू उत्पादन में ऐसी ही नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं. जिससे एक एकड में 120 से 150 क्विंटल होने वाला आलू 200 क्विंटल से अधिक हो रहा है. राम सरन वर्मा की तकनीक के नए मॉडल की उत्तर प्रदेश गवर्नमेंट ने सराहना की है. उन्होंने 56 इंच की बेड बनाकर एक एकड़ में 200 क्विंटल से अधिक आलू का उत्पादन किया है. राम सरन वर्मा का कहना है कि फसलों के अच्छे उत्पादन के लिए किसानों को भी इस तरह की तकनीकों का प्रयोग करना चाहिए. 

56 इंच तकनीक को जानिएराम सरन वर्मा 56 इंच तकनीक को विशेष मानते हैं. किसान सामान्य तौर पर क्यारियों को बनाकर आलू की बुआई करते हैं. इसके लिए नालियों का सहारा भी लिया जाता है. एक क्यारी में एक बीज ही पड़ता है. इसकी चौड़ाई करीब 12 से 14 इंच रहती है. इसका नुकसान यह है कि बेहतर आलू की उपज के लिए जगह नहीं हो पाती और आलू की प्रॉडक्टिविटी घट जाती है. यदि आलू उत्पादन की बात करें तो इस तकनीक से उपज महज एक एकड़ में 100 से 120 क्विंटल रह जाती है. लेकिन बाराबंकी में हरख ब्लॉक के दौलतपुर गांव के पद्मश्री प्रगतिशील किसान राम सरन वर्मा ने इससे अलग तकनीक इजाद की है. उन्होंने चौड़ी बेड बनाकर आलू की दो लाइन की बोआई की है. बेड की चौड़ाई 56 इंच रखी गई है. इसी कारण इस तकनीक का नाम 56 इंच तकनीक दिया गया है. 

बारिश, तूफान से भी नहीं पड़ेगा फर्कराम सरन वर्मा का कहना है कि जरा सी बारिश आने, हवा चलने और पानी भरने से आलू की फसल को नुकसान हो जाता है. इस तकनीक का फायदा यही है कि बारिश आए या तूफान, इस तकनीक से आलू की पैदावार पर केाई असर नहीं पड़ेगा. 

40 प्रतिशत अधिक हुआ प्रॉडक्शनमीडिया रिपोर्ट के अनुसार, राम सरन वर्मा ने बताया कि बेड को इस हिसाब से मोटा रखा गया है कि आलू का उत्पादन अधिक हो जाए. पिछले साल इस तकनीक को अपनाया था. इससे 250 से 300 क्विंटल प्रति एकड़ उपज मिली. नइ्र तकनीक से नालियों की संख्या घट गई है. इसका फायदा यह है कि पानी की बचत 30 प्रतिशत से अधिक हो गई है और उत्पादन 40 प्रतिशत से अधिक हो रहा है. 

180 एकड़ में की बुआईराम सरन वर्मा ने इस नई तकनीक से 180 एकड़ में आलू की बुआई की है. उन्होंने कहा कि एक एकड़ में 40 ग्राम के 40 हजार आलू के बीज डाले हैं. किसान जहां आमतौर पर प्रति बीघा दो बोरी खाद डालता है. उनका काम एक बोरी में चल जाता है. अच्छी पैदावार के लिए किसानों को 25 अक्टूबर से 5 नवंबर के बीच बुआई कर लेनी चाहिए. 

 

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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