Poplar Tree Plantation: भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां आज भी किसान खेती-किसानी (Agriculture in India) से जुड़कर अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं, लेकिन कुछ समय से किसानों की आमदनी को दोगुना करने की कवायद तेज हो गई है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये किसानों को नई तकनीकों, नई फसलों, नवाचार और खेती के साथ-साथ पेड़-पौधे लगाने (Plantation Drive) के लिये प्रेरित किया जा रहा है.


जी हां, खेत की बाउंड्री पर पेड़ लगाकर किसानों को ना सिर्फ फसलों का बेहतरीन उत्पादन मिल सकता है, बल्कि यह किसानों के लिये फिक्स डिपोजिट (Agriculture Fixed Deposit) की तरह काम करता है, जिसमें नुकसान की कोई संभावना नहीं होती, बल्कि एक समय के बाद किसानों को मोटा मुनाफा मिलता है.


ऐसा ही एक पेड़ है पोपलर (Poplar Tree), जिसकी बागवानी का प्रचलन बढ़ता जा रहा है. अब किसान खेती से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिये खेतों की बाउंड्री या फिर पूरे खेत में ही पोपलर के पेड़ लगा रहे हैं. इसका सबसे बड़ा फायदा यही है कि अलग से देखभाल और खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि पेड़ों के बीच-बीच में बागवानी फसलों की खेती (Co-cropping Farming) करके काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.


पोपलर की खेती के फायदे
बता दें कि देश-दुनिया में पोपलर की लकड़ी की भारी डिमांड रहती है. इस लकड़ी का इस्तेमाल हल्की प्लाईवुड, चॉप स्टिक्स, लकड़ी के बकसे, माचिस, पेंसिल के अलावा खिलौने और कई उत्पादों को बनाने में किया जाता है. वहीं पोपलर के पेड़ की छाल से भी लुगदी बनाई जाती है, जिसका इस्तेमाल कागज बनाने में किया जाता है. भारत में पिछले कुछ सालों से पोपलर के पेड़ लगाने का चलन बढ़ सा गया है. इससे पहले एशियाई देश, नॉर्थ अमेरिका, यूरोप और अफ्रीकी देशों में कई सदियों से पोपलर के पेड़ लगाने का ट्रेंड चला आ रहा है.


सह-फसल खेती से डबल कमाई
भारत में अभी पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल आदि में पोपलर के पेड़ों की बागवानी की जा रही है. यहां किसान पोपलर के पेड़ों की रोपाई करने के बाद बीच में खाली पड़ी जगह पर भी गेहूं, गन्ना, हल्दी, आलू, धनिया, टमाटर, शिमला मिर्च जैसी सब्जी और खाद्यान्न फसलों के साथ-साथ औषधीय फसलों की खेती करके अतिरिक्त आमदनी ले रहे हैं. जाहिर है कि पोपलर के पेड़ों को बढ़ने में 5 से 7 साल का समय लग जाता है. ऐसे में बीच-बीच में बागवानी फसलों की खेती के जरिये अतिरिक्त आमदनी मिल जाती है, जिससे खेती लागत और व्यक्तिगत खर्चे निकालना काफी आसान हो जाता है. 


पोपलर की खेती से आमदनी
बता दें कि पोपलर का पौधा (Poplar Plant) लगाने के बाद पेड़ को परिपक्व होने में काफी समय लगता है. एक अनुमान के मुताबिक करीब 5 से 7 साल के अंदर इसकी लंबाई 85 फीट तक पहुंच सकती है, जिसके बाद जरूरत के मुताबिक इसकी कटाई कर ली जाती है. पोपलर की लकड़ियां (Cotton Wood)  ही बाजार में 700 से 800 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा के दाम पर बिकती है. इसके पेड़ से बना एक ही लट्ठ 2000 रुपये की कीमत में बिक जाता है.


अगर पोपलर के पेड़ों का सही प्रबंधन करके प्रति हेक्टेयर खेत से 250 पेड़ों का उत्पादन ले सकते हैं, जिससे कई हजारों टन लकड़ी (Poplar Wood) और कागज के लिये छाल का इंतजाम हो जाता है. इस तरह पोपलर की खेती करके किसान 6 लाख से 7 लाख रुपये की आमदनी कमा सकते हैं. इसके अलावा, पोपलर के पेड़ों (Poplar Tree Farming) के साथ बागवानी फसलों की सह-फसल खेती करके तो गजब का मुनाफा मिलता है. इस तरह पोपलर के पेड़ शॉर्ट टर्म फिक्स डिपोजिट और बागवानी फसलों की अंतरवर्तीय खेती (Co-cropping with Poplar Tree) से आमदनी ही फिक्स डिपोजिट के ब्याज के रूप में काम करती है.


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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