Opium Farming Process: भारत सिर्फ आयुर्वेद का प्रणेता ही नहीं है, बल्कि दुनिया में सबसे ज्यादा औषधियां हमारे देश में ही उगाई (Herbal Farming) जाती है. ऐसा ही एक औषधी पौधा अफीम (Opium Herbal Plant), जिसका इस्तेमाल कई गंभीर बीमारियों के इलाज और दवा बनाने में किया जाता है. इन पौधे में जो औषधीय तत्व मॉर्फिन और कोडीन पाये जाते हैं. इनका इस्तेमाल दर्द निरोधक और नींद की दवायें बनाने में किया जाता है. यही कारण है कि भारत में इसकी खेती करने के लिये किसानों को लाइसेंस (License for Opium Farming) लेना पड़ता है. फिलहाल भारत के उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के कई किसान कानून के दायरे में रहकर अफीम की खेती (Opium Farming) कर रहे हैं.
अफीम की खेती का लाइसेंसअफीम का इस्तेमाल दवायें बनाने में तो किया जाता है, लेकिन ये सेहत के लिये हानिकारक भी साबित हो सकता है. यही कारण है कि आज भी भारत में अफीम की खेती प्रतिबंधों के दायरे में आती है, हालांकि कई किसान लाइसेंस लेकर अफीम की खेती कर रहे हैं. खासकर हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत उत्तरी राज्यों के किसानों ने आएनडीपीएस अधिनियम, 1985 की धारा 8 के तहत केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो से अफीम की खेती के लिये लाइसेंस प्राप्त किया हुआ है.
अफीम की खेती का समयअफीम की अच्छी क्वालिटी की फसल लेने के लिये मिट्टी और जलवायु का अहम योगदान होता है, इसलिये केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो से लाइसेंस प्राप्त करने के बाद अक्टूबर से लेकर नवंबर के बीच इसकी बिजाई का काम किया जाता है. इसकी खेती से बेहतर उत्पदान लेने के लिये उन्नत किस्म के बीजों का ही चयन करना चाहिये.
अफीम की खेती का तरीकाअफीम की खेती के लिये अच्छी मात्रा में खाद-उर्वरकों की जरूरत पड़ती है. खासकर शुरुआत में बिजाई से पहले खेत में खाद के साथ-साथ डीएपी और दूसरे उर्वरकों को मिट्टी में मिलाया जाता है. इसके उन्नत किस्म के बीजों से खेत में क्यारियां तैयार की जाती है, जिनकी देखभाल किसी बच्चे की तरह करनी होती है.इसकी खेती के दौरान सिंचाई का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. पूरी फसल में सिर्फ 10 से 12 बार टपक सिंचाई विधि से पानी दिया जाता है.
अफीम में कीट नियंत्रणअफीम की खेती मुनाफेदार तो है, लेकिन किसानों के लिये उतना ही चुनौतीपूर्ण भी है. इस फसल में कीट-रोग लगने की काफी संभावना रहती है, इसलिये रोजाना एक बार खेतों की निगरानी की जाती है. इसके अलावा विशेषज्ञों की सलाह पर हर 8 से 10 दिनों के भीतर कीटनाशकों का छिड़ाकव भी किया जाता है, ताकि फसल को नुकसान से बचाया जा सके.
अफीम का फसल प्रबंधनखेत में अफीम की बुवाई करने के 95 से 115 दिनों के अंदर फसल से फूल निकलना शुरु हो जाते हैं. फूल के परिपक्व होने के 12 से 20 दिनों के बाद अफीम का कैप्सूल तैयार हो जाता है, जिससे लेटेक्स निकालने के लिये लैसिंग यानी चिराई की जाती है. ये काम सुबह 8 बजे से पहले किया जाता है और अंतिम लैंसिंग के बाद लेटेक्स का बहाव रुकने फसल को 20 से 25 दिनों तक सूखने के लिये छोड़ दिया जाता है. अफीम की फसल से लेटेक्स वाले कैप्सूल को तोड़ लेते हैं और बाकी बचे हिस्से की कटाई-छंटाई की जाती है.
अफीम की खेती से उत्पादनएक हेक्टेयर खेत से अफीम के काफी कैप्सूल मिल जाते हैं, जिन्हें सुखाकर लकड़ी के डंडे से पीटा जाता है. बता दें कि इसी कैप्सूल से अफीम के बीज (Opium Seeds) मिलते हैं. इस तरह प्रति हेक्टेयर फसल से 50 से 60 किलोग्राम कच्ची अफीम की उपज (Opium Production) मिलती है, जो 700 से 2100 रुपए प्रति किलोग्राम के भाव पर खरीदी जाती है. आमतौर पर अफीम की खेती (opium Cultivation) करके किसानों को 25,000 से 1 लाख तक का शुद्ध मुनाफा हो जाता है.
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