Commercial Farming of Isabgol: भारत में औषधीय फसलों (Medicinal Crop) की खेती का चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है. किसान अब पारंपरिक फसलों से अधिक मुनाफा कमाने के लिये जड़ी-बूटियों की खेती (Herbal Farming)  की तरफ रुख कर रहे हैं, जिससे कम मेहनत और कम समय में ही अच्छी आमदनी मिल जाती है. ऐसी ही औषधीय फसलों में शामिल है ईसबगोल (Isabgol), जो दिखने में झाड़ी के समान लगती है, लेकिन पशुओं के चारे के साथ-साथ इंसानों की औषधीय जरूरतों को भी पूरा कर सकती हैं. किसान चाहें तो दोगुना फायदे के लिये पांरपरिक और बागवानी फसलों के साथ ईसबगोल की व्यावसायिक खेती (Commercial Farming of Isabgol) का रास्ता भी अपना सकते हैं.


क्या है ईसबगोल (What is Isabgol)
ईसबगोल एक औषधीय पौधा है, जो दिखता तो बाजरा की फसल की तरह है, लेकिन इसमें गेहूं जैसी बालियां लगती है. झाड़ी जैसी दिखने वाली ये औषधीय फसल अच्छी मात्रा में पानी सोखने की क्षमता रखती है.  ईसबगोल के इस्तेमाल से कई बीमारियों को दूर कर सकते हैं. साथ ही ज्यादातर किसान ईसबगोल की पत्तियों को पशु चारे के रूप में (Isabgol Farming for Animal Fodder) भी प्रयोग करते हैं. यही कारण है कि ईसबगोल इसकी खेती से किसानों के साख-साथ पशुओं को भी लाभ होगा. इसी के साथ-साथ खेती और संसाधनों में भी खास बचत होगी. 




  • बता दें कि सही देखभाल के बाद ईसबगोल की फसल से 10 से 15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की उपज ले सकते हैं, जो बाजार में 12,500 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक जाती है.

  • इतना ही नहीं, प्रति हैक्टेयर फसल से करीब 5 क्विंटल पशु चारा यानी भूसी भी निकलती है, जिसकी कीमत 25,000 रुपये प्रति क्विंटल है.

  • इसके अलावा, ईसबगोल की उपज से निकले बीजों को मुर्गियों के दाने (Isabgol Seeds for Poultry Feed) के रूप में भी प्रयोग किया जाता है.

  • यही कारण है कि औषधीय खेती के उद्देश्य से उगाई गई ईसबगोल की फसल से अलग-अलग रूप में आमदनी मिल जाती है.


इन राज्यों में हो रही है ईसबगोल की खेती (Isabgol Farming in India)
भारत में ईसबगोल की खेती कई दशकों से चली आ रही है. राजस्थान(Rajasthan), हरियाणा(Haryana), पंजाब(Punjab), गुजरात (Gujarat)और मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के किसान बड़े पैमाने पर ईसबगोल उगा रहे हैं. इसकी खेती के लिये उष्ण जलवायु के साथ-साथ समान्य पीएच वाली उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है.


बेहतर उत्पादन लेने के लिये मिट्टी में नमी बनाकर रखना जरूरी होता है. अक्टूबर से नबंववर के बीच का समय ईसबगोल की बुवाई का लिये सबसे उपयुक्त रहता है. इससे पहले इसकी नर्सरी, बीजों का चयन और खेत की तैयारी जैसे कृषि कार्य जैविक विधि (Organic Farming of Isabgol) से किये जाते हैं.



ईसबगोल की खेती से लाखों की आमदनी (Income from Isabgol Cultivation)
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक ईसबगोल की खेती (Isabgol Cultivation) से अच्छी आमदनी लेने के लिये वैज्ञानिक तरीके अपनाने चाहिये. इसके लिये किसानों को उन्नत किस्मों के बीजों का चयन, कार्बनिक (Vermi Compost for Isabgol) और जीवाश्म वाली जैविक खाद (Organic Fertilizer), खेत की तैयारी और फसल की सही देखभाल जैसी बातों का खास ध्यान रखना होगा. इससे ना सिर्फ बेहतर उत्पादन (Isabgol Production)लेने में मदद मिलेगी, बल्कि किसानों को भी उपज के बेहतर दाम मिल पायेंगे. 



  • एक अनुमान के मुताबिक ईसबगोल की खेती करने के लिये 10,800 रुपये प्रति हैक्टेयर के हिसाब से लागत आती है. 

  • वही बाजार में इसकी विभिन्न उपजों को बेचकर आराम से 1,76,600 रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पैसा कमा सकते हैं.




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