Millet Cultivation: पूरी दुनिया को मोटा अनाज की अहमियत समझाने के लिए ही अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष मनाया जा रहा है. कई देशों में सदियों से मिलेट की खेती हो रही है, लेकिन धान, गेहूं, मक्का जैसी नकदी फसलों के मुकाबले मिलेट का रकबा काफी कम है. बेशक मिलेट के उत्पादन में भारत पहले पायदान पर है, लेकिन देश में ज्यादातर किसानों के मन में मोटा अनाज की खेती को लेकर कई संशय है. सबसे बड़ी वजह यही है कि जहां गेहूं, चावल, मक्का का सेवन पूरे साल किया जाता है. वहीं गर्म तासीर वाले मोटा अनाज को सिर्फ सर्दियों में ही खा सकते है. बाकी अनाजों के मुकाबले मिलेट की खपत कम है, जिसे बढ़ाने के लिए जागरुकता अभियान चलाए ही जा रहे हैं. वहीं किसानों का मत है कि मिलेट के सही दाम मिलने लगें तो इसका रकबा बढ़ाने में मदद मिलेगी ही. इसके लिए सरकार को भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मिलेट की खरीद के बारे में सोचना चाहिए.
इस वजह से मोटा अनाज बोते हैं किसानमोटा अनाज एक पर्यावरण अनुकूल फसल है, जो मौसम की विपरीत परिस्थितियों में भी बिना उर्वरक-कीटनाशक की उपयोगिता के ही तैयार हो जाती है. कम पानी वाले इलाकों के लिए तो श्री अन्न वरदान है.
इस फसल को उगाने की लागत बेहद कम है, इसलिए किसानों को मिलेट की खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है, लेकिन संशय यह है कि ज्यादातर किसान आज भी अपने दैनिक आवश्यकता और पशु चारे के तौर पर ही मोटा अनाज उगाते हैं.
खरीफ सीजन में ही ज्यादातर मोटा अनाज- ज्वार, बाजरा, मक्का उगाया जाता है, जो अक्टूबर तक कटाई के लिए तैयार हो जाता है और सर्दी तक थालियों में पहुंचा जाता है. यह गर्म होता है, इसलिए सर्दियों में ही इसका सेवन किया जाता है.
वहीं जो किसान बड़े पैमाने पर मिलेट का उत्पादन ले भी रहे हैं, उन्हें खुले बाजार में किलो के भाव मोटा अनाज बेचना पड़ रहा है. व्यापारी और दुकानदार भी औने-पौने दामों पर मिलेट खरीदते हैं, जिससे किसानों को कुछ खास फायदा नहीं होता. यदि सरकार एमएसपी पर मिलेट की खरीद सुनिश्चित करे तो किसानों में मोटा उगाने के लिए उत्साह बढ़ेगा.
क्या कहते हैं एक्सपर्टमोटा अनाज को लेकर एक्सपर्ट का भी यही मानना है कि धान, गेहूं, मक्का आदि की खेती करके किसान आशवस्त हो जाते हैं. जब ये फसल कहीं नहीं बिकती तो किसानों के पास एमएसपी पर बेचने का ऑप्शन तो होता ही है, इसलिए इन फसलों का रकबा अधिक है.
किसान इन्हें बड़े लेवल पर उगाते हैं, लेकिन मोटा अनाज की सिमटती खेती के पीछे मार्केटिंग एक बड़ी वजह हो सकती है. इस खेती से मिट्टी की सेहत कायम रहती है, पर्यावरण पर बुरा असर नहीं होता, भूजल स्तर भी कायम रहता है, कीट-रोग और मौसम की खास चिंता नहीं रहती और फसल उपज बढ़ाने के लिए उर्वरकों के इस्तेमाल भी आवश्यकता नहीं होती.
मोटा अनाज की खेती से कम लागत में ही औसत से अधिक उत्पादन मिल जाता है, लेकिन मिलेट के जरिए किसानों की आय दोगुना करने के लिए इसके बाजिब दाम उपलब्ध करवाना भी जरूरी है.
मिलेट को लेकर क्या है सरकार का प्लानभारत के प्रस्ताव पर 72 देशों के समर्थन के बाद ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किया. देश-दुनिया के लोगों को मिलेट या श्री अन्न की अहमियत समझाने और इसके उत्पादन के साथ-साथ उपयोगिता बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने भी पूरी प्लानिंग कर ली है.
- मिलेट का उत्पादन बढ़ाने के लिए देशभर में ब्लॉक स्तर पर किसान गोष्ठियों का आयोजन किया जाना है.
- किसानों को मिलेट के उन्नत किस्त के बीजों की निशुल्क मिनी किट के साथ खेती के लिए प्रोत्साहन राशि भी दी जाएगी.
- मिलेट का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को मिट्टी की जांच करवाने और इसके खेती के फायदों से रूबरू करवाया जाएगा.
- आम जनता को मिलेट के फायदों के बारे में जागरूक किया जाएगा, ताकि इसकी खपत को बढ़ाया जा सके.
- ज्वार, बाजरा और मक्का की खेती को विशेष रूप से प्रोत्साहित करने की भी योजना है.
- बजट 2023-24 में घोषित श्री अन्न योजना के जरिए भी किसानों को आर्थिक और तकनीकी मदद प्रदान करने का प्लान है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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