Making of Dhaincha Green Manure for Nitrogen: भारत में फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिये यूरिया (Urea for Crop) का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता है. इससे फसलों में नाइट्रोजन की आपूर्ति होती है, जो पौधों के विकास के लिये बेहद जरूरी है, लेकिन यूरिया जैव उर्वरक नहीं है, जिसके कारण प्राकृतिक और जैविक खेती का मकसद पूरा नहीं हो पाता. इसके सामाधान के रूप में हमारे किसान अब ढेंचा की खेती (Dhaincha Farming) पर जोर दे रहे हैं. बता दें कि ढेंचा एक हरी खाद वाली फसल (Dhaincha Green Manure) है, जो नाइट्रोजन का बेहतरीन स्रोत है. इसके इस्तेमाल के बाद खेत में अलग से यूरिया की जरूरत नहीं पडेगी और खरपतवार जैसी समस्यायें भी जड़ से खत्म हो सकती है.


क्या है ढेंचा
दरअसल ढेंचा खरपतवार का ही एक पौधा है, जिसका इस्तेमाल खेतों के लिये हरी खाद बनाने में किया जाता है. ढेंचा के पौधे बढ़ने पर इसकी कटाई करके हरी खाद बना सकते हैं, जिसके बाद ये दोबारा बढ़ती. ढेंचा की कटाई के बाद इसके अवशेषों को खेतों में फैला दिया जाता है, जिसके बाद हल्दी सिंचाई करने पर अवशेष गलकर मिट्टी में मिल जाते हैं और खेतों को प्राकृतिक नाइट्रोजन की आपूर्ति करते हैं.




कैसे करें ढेंचा की खेती
इसकी खेती सामान्य तरीके से ही करते हैं. इसकी बुवाई के मात्र एक-सवा महीने अंदर ढेंचा के पौधों की लंबाई 3 फीट हो जाती है और इसकी गांठों में नाइट्रोजन का भंडार भर जाता है. इसी समय ढेंचा की कटाई करके खेतों में फैला देते हैं.



  • चाहें तो खाद्यान्न या बागवानी फसलों के साथ-साथ ढेंचा की सह-फसल खेती भी कर सकते हैं. इसे फसलों में बीच में लगाया जाता है, जिससे खरपतवारों की समस्या नहीं रहती.

  • दरसअल ढेंचा लगाने पर खेतों में झाडीदार उत्पादन मिलने लगता है, जिसके चलते धूप सीधा जमीन पर नहीं पड़ती.

  • इतना ही नहीं, सह-फसल खेती करने पर ढेंचा की गाठों से फसलों को भी नाइट्रोजन की आपूर्ति होती रहती है.

  • ये ढेंचा ही है, जो फसल में नाइट्रोजन के साथ-साथ फास्फोरस और पोटाश की कमी को भी पूरा करता है.


फूल आने पर बनाते हैं खाद
ढेंचा की खेती रबी या खरीफ सीजन से पहले की जाती है, ताकि नकदी फसलों को कम लागत में बेहतरीन पोषण मिल सके. इसकी फसल में फूल निकलने के बाद कटाई का काम किया जाता है. इस समय ढेंचा की जड़ें काफी नाइट्रोजन सोख लेती हैं.


फसल की कटाई के बाद हरी खाद बनने के लिये पूरे खेत पर फैला दिया जाता है और हल्की सिंचाई भी की जाती है. इस तरह पानी पड़ने पर जड़ों का नाइट्रोजन मिट्टी में पहुंच जाता है और फसलों को पोषण प्रदान करता है.  


यूरिया का खर्च बचेगा
कृषि विशेषज्ञों की मानें तो ढेंचा की खेती (Dhaincha Cultivation) करने के बाद इसे हरी खाद के रूप में इस्तेमाल करने पर यूरिया की एक तिहाई जरूरत कम हो जाती है, जिससे पैसा और संसाधनों की बचत होती है.



  • ढेंचा की हरी खाद बनाने पर खेतों में खरपतवार की संभावना नहीं रहती, जिससे निराई-गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण की बड़ी लागत कम हो जाती है.

  • ढेंचा की पत्तियों में नाइट्रोजन का रस काफी मात्रा में होता है, जिसके कारण कीट-पतंगों का असर सीधा फसल पर नहीं पड़ता और फसलें सुरक्षित रहती हैं.

  • इससे फसलों में नाइट्रोजन के साथ-साथ फास्फोरस और पोटाश की भी आपूर्ति होती है, जिससे पोषक तत्वों पर अलग से होने वाला खर्चा बच जाता है.

  • इससे फसलों के साथ-साथ मिट्टी की सेहत (Soil Heath)भी कायम रहती है. ढेंचा से भूजल स्तर (Ground Water Level)कायम रहता है, जिससे अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं पडती.




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