भांग और गांजे का नाम सुनते ही आपके दिमाग में जो सबसे पहला शब्द आता है वो है नशा. हालांकि, इनका प्रयोग आयुर्वेद में औषधि के तौर पर भी होता है. खैर, आज इस पौधे के गुणों पर नहीं बल्कि खेती पर बात होगी. हम आपको इस आर्टिकल में बताएंगे कि अगर आप भांग की खेती करना चाहते हैं, तो आपको सरकार से कैसे अनुमति लेनी होगी. इसके साथ ही हम आपको ये भी बताएंगे कि गांजे और भांग में क्या अंतर होता है और सरकार किसकी खेती की अनुमति देती है.

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भांग और गांजे में अंतर

आपमें से कई लोगों को लगता होगा कि भांग और गांजे में बहुत अंतर होता होगा, लेकिन ऐसा नहीं है. दरअसल, भांग और गांजा एक ही प्रजाति कि पौधे हैं. बस इसको नर और मादा के रूप में विभाजित कर दिया जाता है. इसमें नर प्रजाति से भांग बनती है और मादा प्रजाति से गांजा बनता है. वहीं ये दोनों जिस पौधे से बनते हैं उसे कैनाबिस कहते हैं. हालांकि, दोनों भले ही एक पौधे से बनते हों लेकिन इनसे नशा करने का तरीका बिल्कुल अलग अलग है. एक तरफ जहां भांग को खा कर नशा किया जाता है, वहीं दूसरी ओर गांजे को तंबाकु की तरह सुलगा कर पी कर नशा किया जाता है.

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भांग की खेती होती है या गांजे की

सही मायनों में कहें तो खेती गांजे की नहीं बल्कि भांग की होती है. दरअसल, जिस पौधे को अंग्रेजी में कैनाबिस कहते हैं उसे हिंदी में भांग कहते हैं. भांग का पौधा 3 से 8 फ़ीट ऊंचा हो सकता है. इसके पौधों पर पत्ते एक समान अंतर के क्रम में लगे होते है. भांग की ऊपरी पत्तियां 1-3 खंड और निचली पत्तियां 3-8 खंड वाली होती हैं. आपको बता दें, कैनाबिस के नर पौधे के पत्तों को सुखाकर भांग और मादा पौधे की रालीय पुष्प से निकली मंजरियों को सुखाकर गांजा तैयार किया जाता है.

कैसे मिलता है लाइसेंस

भारत में भांग की खेती पर प्रतिबंध है. दरअसल, साल 1985 में भारत सरकार ने नार्कोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंसेज (NDPS) अधिनियम के तहत देश में भांग की खेती को प्रतिबंधित कर दिया था. लेकिन यही NDPS अधिनियम राज्य सरकारों को बागवानी और औद्योगिक उद्देश्य के लिए भांग की खेती की अनुमति प्रदान करने का अधिकार भी देता है. एनडीपीएस ऐक्ट के मुताबिक ‘केंद्र सरकार कम टीएचसी मात्रा वाली भांग की किस्मों पर अनुसंधान और परीक्षण को प्रोत्साहित कर सकती है.

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